15 रजब-उल-मुरज्जब
रजब के महीने की 15वीं रात/दिन के अमाल
रजब महीने का इंडेक्स

अहमियत

रिवायत है कि रसूलुल्लाह (स) ने फ़रमाया: “रजब के महीने की दरमियानी रात अल्लाह तआला आमाल लिखने वाले फ़रिश्तों को हुक्म देता है कि वे लोगों के आमाल-नामों को देखें और जो बुरे आमाल पाएँ उन्हें मिटा कर उनकी जगह नेकियाँ लिख दें।”
इस पूरी रात को इबादत में गुज़ारना मुस्तहब है।

ग़ुस्ल अदा करें

इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत – 15 रजब की रात के लिए मख़सूस

इमाम हुसैन (अ) की दूसरी ज़ियारत – 15 रजब की रात/दिन के लिए आम

सैय्यद इब्ने ताउस ने इस दुआ को इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से इस तरह रिवायत किया है:
रजब की पंद्रहवीं रात को बारह रकअत नमाज़ अदा करें, हर दो रकअत अलग सलाम के साथ। हर रकअत में चार-चार बार यह सूरहें पढ़ें:- सूरह फ़ातिहा, सूरह इख़लास, अल-फ़लक़, अन-नास, आयतुल कुर्सी और सूरह क़द्र
इसके बाद नीचे लिखी दुआ चार बार पढ़ें:
اللَّهُ اللَّهُ رَبِّي
अल्लाहु अल्लाहु रब्बी
अल्लाह, अल्लाह ही मेरा रब है।

لاَ اُشْرِكُ بِهِ شَيْئاً
ला उश्रिकु बिही शैअन
मैं उसके साथ किसी को शरीक नहीं ठहराता।

وَلاَ اتَّخِذُ مِنْ دُونِهِ وَلِيّاً
वला अत्तख़िज़ु मिन दूनिही वलिय्यन
और मैं उसके सिवा किसी को अपना सरपरस्त नहीं बनाता।


नमाज़ का मुख़्तसर तरीक़ा (रिवायत में): 12 रकअत नमाज़ अदा करें, 6×2 के तौर पर, हर रकअत में सूरह फ़ातिहा और कोई भी दूसरी सूरह पढ़ें।
नमाज़ पूरी करने के बाद सूरह फ़ातिहा, सूरह इख़लास, सूरह फ़लक़, सूरह काफ़िरून, सूरह नास, सूरह क़द्र और आयतुल कुर्सी – हर एक को चार-चार बार पढ़ें।
इसके बाद नीचे लिखी दुआ चार बार पढ़ें:
سُبْحَانَ ٱللَّهِ وَٱلْحَمْدُ لِلَّهِ
सुब्हानल्लाहि वल्हम्दु लिल्लाहि
अल्लाह पाक है और तमाम तारीफ़ें अल्लाह ही के लिए हैं,

وَلاَ إِلٰهَ إِلاَّ ٱللَّهُ وَٱللَّهُ اكْبَرُ
वला इलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर
अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और अल्लाह सबसे बड़ा है।

इसके बाद आप यह कहें:
اللَّهُ اللَّهُ رَبِّي
अल्लाहु अल्लाहु रब्बी
अल्लाह, अल्लाह ही मेरा रब है।

لاَ اُشْرِكُ بِهِ شَيْئاً
ला उश्रिकु बिही शैअन
मैं उसके साथ किसी को शरीक नहीं ठहराता।

وَمَا شَاءَ ٱللَّهُ
वमा शा-अल्लाहु
वही होता है जो अल्लाह चाहता है।

لاَ قُوَّةَ إِلاَّ بِٱللَّهِ ٱلعَلِيِّ ٱلْعَظِيمِ
ला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलीय्यिल अज़ीम
अल्लाह के सिवा कोई क़ुव्वत नहीं, जो बुलंद और अज़ीम है।


एक और नमाज़ है जो 30 रकअत पर मुश्तमिल है, जिसमें हर रकअत में सूरह फ़ातिहा एक बार और सूरह तौहीद दस बार पढ़ी जाए।
सैय्यद इब्ने ताउस ने इस नमाज़ को रसूलुल्लाह (स) से बहुत ज़्यादा सवाब के साथ रिवायत किया है।
13, 14 और 15 की तीन रातों में 12 रकअत नमाज़ (हर रात 4 रकअत, 2-2 के सेट में) की आख़िरी 6 रकअत पढ़ें। 15वीं रात को 6 रकअत पढ़ें:
हर रकअत में सूरह फ़ातिहा, सूरह यासीन, सूरह मुल्क और सूरह इख़लास पढ़ें।
इस अमल के ख़त्म होने पर फज्र के वक़्त अपने आमाल अहले-बैत (अ) के सुपुर्द करें। उनकी पनाह तलब करें, उनसे दुआ करें कि वे आपके आमाल को मुकम्मल करें और उन्हें अल्लाह तआला की बारगाह में पेश करें, और आपकी हाजतों के पूरा होने में मदद करें।





इस दिन ग़ुस्ल करें।

इस दिन इमाम हुसैन (अ) के रौज़े की ज़ियारत करना मुस्तहब है। रिवायत है कि अबू-बसीर ने इमाम रज़ा (अ) से इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र की ज़ियारत के सबसे बेहतर औक़ात के बारे में पूछा। इमाम (अ) ने फ़रमाया: “रजब की पंद्रहवीं और शाबान की पंद्रहवीं।”
इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत (अलैहिस्सलाम) – 15 रजब की रात/दिन के लिए आम

सलमान फ़ारसी की 10 रकअत नमाज़ पढ़ें (अगले टैब में देखें) अलग पेज

अमाल उम्मे दाऊद 15 रजब के दिन अदा किया जाता है

अदी बिन साबित अल-अंसारी कहते हैं कि मैं 15 रजब को इमाम अली (अ) की ज़ियारत के लिए गया। उन्होंने मुझे इशारा किया कि उनके पीछे खड़ा होकर नमाज़ पढ़ो। मैंने ऐसा किया और चार रकअत नमाज़ अदा की।
4 [2×2] रकअत नमाज़ पढ़ें और नमाज़ से फ़ारिग़ होकर हाथ उठाकर यह कहें:


اَللَّهُمَّ يَا مُذِلَّ كُلِّ جَبَّارٍ
अल्लाहुम्मा या मुज़िल्ला कुल्लि जब्बारिन
ऐ अल्लाह! ऐ हर जब्बार को ज़लील करने वाले!

وَيَا مُعِزَّ ٱلْمُؤْمِنِينَ
व या मु’इज़्ज़ा अल-मुअ’मिनीन
और ऐ मोमिनों को इज़्ज़त देने वाले!

أَنْتَ كَهْفِي حِينَ تُعْيِينِي ٱلْمَذَاهِبُ
अन्ता कह्फ़ी हीना तु’ईनी अल-मज़ाहिबु
तू ही मेरा सहारा है जब तमाम रास्ते मुझे हैरान कर दें,

وَأَنْتَ بَارِئُ خَلْقِي رَحْمَةً بِي
व अन्ता बारिउ ख़ल्क़ी रह्मतन बी
और तूने मेरी ख़िल्क़त अपनी रहमत से बनाई,

وَقَدْ كُنْتَ عَنْ خَلْقِي غَنِيّاً
व क़द कुन्ता अन ख़ल्क़ी ग़निय्यन
हालाँकि तू मेरी पैदाइश का मोहताज न था।

وَلَوْلاَ رَحْمَتُكَ لَكُنْتُ مِنَ ٱلْهَالِكِينَ
व लवला रह्मतुका लकुन्तु मिन अल-हालिकीन
अगर तेरी रहमत न होती तो मैं हलाक होने वालों में से होता।

وَأَنْتَ مُؤَيِّدِي بِٱلنَّصْرِ عَلَىٰ أَعْدَائِي
व अन्ता मु’अय्यिदी बिन्नस्रि अला अ’दाई
और तू ही मेरे दुश्मनों के मुक़ाबले में मेरी मदद करने वाला है,

وَلَوْلاَ نَصْرُكَ إِيَّايَ لَكُنْتُ مِنَ ٱلْمَفْضُوحِينَ
व लवला नस्रुका इय्याया लकुन्तु मिन अल-मफ़दूहिन
और अगर तेरी मदद न होती तो मैं रुस्वा होने वालों में से होता।

يَا مُرْسِلَ ٱلرَّحْمَةِ مِنْ مَعَادِنِهَا
या मुरसिला अर-रह्मति मिन मआदिनिहा
ऐ रहमत को उसके मआदिन से भेजने वाले!

وَمُنْشِئَ ٱلْبَرَكَةِ مِنْ مَوَاضِعِهَا
व मुन्शिअ अल-बरकति मिन मवाज़िअिहा
और बरकत को उसके मराकिज़ से पैदा करने वाले!

يَا مَنْ خَصَّ نَفْسَهُ بِٱلشُّمُوخِ وَٱلرِّفْعَةِ
या मन ख़स्सा नफ़्सहु बिश्शुमूखि वर्रिफ़्अति
ऐ वो जिसने अपने लिए बुलंदी और रिफ़्अत को ख़ास किया,

فَأَوْلِيَاؤُهُ بِعِزِّهِ يَتَعَزَّزُونَ
फ़-अवलियاؤहु बि’इज़्ज़िही यतअज़्ज़ज़ून
तो उसके औलिया उसकी इज़्ज़त से इज़्ज़त पाते हैं!

وَيَا مَنْ وَضَعَتْ لَهُ ٱلْمُلُوكُ نِيرَ ٱلْمَذَلَّةِ عَلَىٰ أَعْنَاقِهِمْ
व या मन वज़अत् लहू अल-मुलूकु नीरा अल-मज़ल्लति अला अ’नाक़िहिम
और ऐ वो जिसके लिए बादशाहों ने अपनी गर्दनों पर ज़िल्लत का जुआ रख दिया,

فَهُمْ مِنْ سَطَوَاتِهِ خَائِفُونَ
फ़हुम मिन सत्वातिही ख़ाइफ़ून
तो वे उसकी सख़्ती/क़हर से डरते हैं!

أَسْأَلُكَ بِكَيْنُونِيَّتِكَ ٱلَّتِي ٱشْتَقَقْتَهَا مِنْ كِبْرِيَائِكَ
असअलुका बिकैनूनिय्यतिका अल्लती इश्तक़क़तहा मिन किब्रिया-इका
मैं तुझसे तेरी उस कयनूनिय्यत के वसीले से सवाल करता हूँ जिसे तूने अपनी किब्रिया से मुश्तक़ किया है,

وَأَسْأَلُكَ بِكِبْرِيَائِكَ ٱلَّتِي ٱشْتَقَقْتَهَا مِنْ عِزَّتِكَ
व असअलुका बिकिब्रिया-इका अल्लती इश्तक़क़तहा मिन इज़्ज़तिका
और मैं तुझसे तेरी उस किब्रियाई के वसीले से सवाल करता हूँ जिसे तूने अपनी इज़्ज़त से निकाला है,

وَأَسْأَلُكَ بِعِزِّتِكَ ٱلَّتِي ٱسْتَوَيْتَ بِهَا عَلَىٰ عَرْشِكَ
व असअलुका बि-इज़्ज़तिका अल्लती इस्तवैत बिहा अला अर्शिका
और मैं तुझसे तेरी उस इज़्ज़त के वसीले से सवाल करता हूँ जिससे तू अपने अर्श पर क़ायम है,

فَخَلَقْتَ بِهَا جَمِيعَ خَلْقِكَ
फ़ख़लक़्ता बिहा जमीअ ख़ल्क़िका
तो उसी से तूने अपनी तमाम मख़लूक़ात को पैदा किया,

فَهُمْ لَكَ مُذْعِنُونَ
फ़हुम लका मुज़्अिनून
और वे सब तेरे फ़रमाबरदार हैं।

أَنْ تُصَلِّيَ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَأَهْلِ بَيْتِهِ
अन तुसल्लिया अला मुहम्मदिन व अह्लि बैतिही
कि तू मुहम्मद और उनके अहले-बैत पर दरूद भेजे।


पढ़ें
दुआ सद सुब्हान (100 तस्बीहात)



इक़बाल आमाल से:
सेक्शन 60 – रजब की पंद्रहवीं के रहस्यों के बारे में
जान लो कि यह वह दिन है जिसमें बहुत से रहस्य हैं और इसमें बहुत सी नेमतें अता की जाती हैं, ग़रीब बे-नियाज़ हो जाते हैं और ग़मज़दा लोगों को राहत मिलती है। इसलिए तुम्हें चाहिए कि अल्लाह की तरफ़ रुजू करो और उससे अपने मामलों की इस्लाह मांगो। अपने आपको रब की हुज़ूरी में और नबी (अ) का मेहमान समझो। याद रखो, हो सकता है कि तुम रजब के अगले बीच के दिन तक ज़िंदा न रहो!
यह रिवायत इब्ने अब्बास से नक़्ल की गई है। आदम (अ) ने कहा: “ऐ मेरे रब! मुझे अपने सबसे पसंदीदा दिन और औक़ात बता दे।”
फिर अल्लाह तआला ने उन पर वह़ी की: “ऐ आदम! मेरे नज़दीक सबसे पसंदीदा वक़्त रजब के महीने का बीच का दिन है। ऐ आदम! रजब के बीच के दिन क़ुर्ब हासिल करो—नज़र देकर, लोगों को खाना खिलाकर, रोज़ा रखकर, दुआएँ पढ़कर, इस्तिग़फ़ार करके और ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ कहकर।
ऐ आदम! मैंने तेरी नस्ल से एक नबी (अ) मुक़र्रर करने का फ़ैसला किया है जो बद-मिज़ाज नहीं होगा और बाज़ारों में शोर नहीं करेगा। वह नरमदिल, रहमदिल और बहुत बरकत वाला होगा। मैं ख़ास तौर पर उसे और उसकी उम्मत को रजब के बीच के दिन से इज़्ज़त दूँगा। जो मांगेगा उसे अता करूँगा, जो मग़फ़िरत मांगेगा उसे बख़्श दूँगा, जो रिज़्क़ मांगेगा उसे रिज़्क़ दूँगा, ग़लतियों से दरगुज़र करूँगा और जो रहमत मांगेगा उस पर रहमत करूँगा। ऐ आदम! जो शख़्स रजब के बीच के दिन की सुबह रोज़ा रखे, अल्लाह का ज़िक्र करे, आज़िज़ी इख़्तियार करे, अपनी शर्मगाह की हिफ़ाज़त करे और अपने माल से सदक़ा दे, उसके लिए मेरे पास जन्नत के सिवा कोई बदला नहीं।”

रजब की पंद्रहवीं के दूसरे वाक़िआत
रिवायत में आया है: “रजब की पंद्रहवीं को अल्लाह के रसूल (अ) शेबा-ए-अबू तालिब से बाहर तशरीफ़ लाए।
इसी दिन अल्लाह के रसूल (अ) ने अल्लाह की इजाज़त से हमारी सैय्यदा फ़ातिमा ज़हरा (अ) का निकाह हमारे मौला अली (अ) से कराया।
और इसी दिन क़िब्ला बैतुल मुक़द्दस से बदलकर काबा कर दिया गया और मुसलमानों ने मगरिब की नमाज़ काबा की तरफ़ मुँह करके पढ़ी।




मुख़्तसर तरीका:
अगर किसी को ये सूरहें याद न हों या वह सारी सूरहें पढ़ने पर क़ादिर न हो, तो वह नीचे लिखा हुआ अमल करे
तस्बीहाते-अरबा 100 मर्तबा; अल-हम्द 100 मर्तबा, सूरह तौहीद 100 मर्तबा, आयतुल कुर्सी 10 मर्तबा, सलवात 100 मर्तबा।
फिर बहुत सी सूरहों की जगह दुबारा सूरह तौहीद 1000 मर्तबा पढ़े। हवाला
शैख मुफ़ीद ने भी इसी तरह का तरीका बयान किया है। सैयद ताउस ने इक़बाल आमाल में यह भी ज़िक्र किया है कि (अगर सफ़र में हों) तो तमाम सूरहों की जगह सूरह तौहीद 100 मर्तबा पढ़ी जाए।
आम तरीका
13, 14 और 15 रजब को रोज़ा रखें
15 रजब को फ़र्ज़ ज़ुहर-अस्र की नमाज़ अदा करने के बाद क़िबला की तरफ़ रुख़ करके नीचे दी गई सूरहों को तालिका के मुताबिक़ कई मर्तबा पढ़ें:

सूरह नंबर तादाद ऑडियो
अल हम्द 1 100
इख़लास 112 100
आयतुल कुर्सी 2:255-257 10
अनआम 6 1
बनी इस्राईल 17 1
कहफ़ 18 1
लुक़मान 31 1
यासीन 36 1
वस्साफ़्फ़ात 37 1
हा मीम सज्दा 41 1
शूरा 42 1
दुख़ान 44 1
फ़तह 48 1
वाक़ेआ 56 1
मुल्क 67 1
अल क़लम 68 1
इन्शिक़ाक़ 84 1
अल बुरूज से अन नास 85 से 114 1 क्लिक

इसके बाद अगले टैब में दुआ उम्मे दाऊद पढ़ें

रजब माह के पहले, 15वें और आख़िरी दिन 10 रकअत नमाज़ का तरीका
10 रकअत (हर 2 रकअत x 5)।
हर रकअत में पढ़ें: सूरह अल-फातिहा 1 बार, सूरह अल-इख़लास 3 बार और सूरह अल-काफ़िरून 3 बार
हर सलाम के बाद (हर 2 रकअत के अंत में) हाथ उठाकर आम ज़िक्र और फिर हर दिन के लिए ख़ास ज़िक्र पढ़ें:
आम (पहला, 15वां, आख़िरी दिन) — हर 2 रकअत के बाद का ज़िक्र।
لاَ إِلٰهَ إِلاَّ ٱللَّهُ
ला इलाहा इल्लल्लाहु
अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं,

وَحْدَهُ لاَ شَرِيكَ لَهُ
वहदहू ला शरीका लहू
वह अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं।

لَهُ ٱلْمُلْكُ وَلَهُ ٱلْحَمْدُ
लहुल मुल्कु व लहुल हम्दु
उसी के लिए बादशाही है और उसी के लिए तमाम हम्द है।

يُحْيِي وَيُمِيتُ
युहयी व युमीतु
वही ज़िन्दा करता है और वही मौत देता है,

وَهُوَ حَيٌّ لاَ يَمُوتُ
वहुवा हय्युं ला यमूतु
और वही ज़िन्दा है जो कभी नहीं मरता।

بِيَدِهِ ٱلْخَيْرُ
बियदिहिल ख़ैरु
हर भलाई उसी के हाथ में है

وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
वहुवा अला कुल्लि शय'इन क़दीरुन
और वह हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।

रजब की पंद्रहवीं (यानी बीच की) तारीख़ — हर 2 रकअत के अंत में पहली तिलावत के बाद यह भी जोड़ें:
إِلٰهاً وَاحِداً أَحَداً
इलाहन वाहिदन अहदन
वह एक ही माबूद है, यकता और अकेला,

فَرْداً صَمَداً
फर्दन समदन
यक-ओ-तन्हा, बेनियाज़ (जिसकी हर कोई मुहताज है),

لَمْ يَتَّخِذْ صَاحِبَةً وَلاَ وَلَداً
लम यत्तख़िज़ साहिबतन व ला वलदन
जिसने न किसी को बीवी बनाया और न कोई बेटा।


फिर हाथों को चेहरे पर फेरें और अपनी हाजतें पेश करें।

सलमान फ़ारसी रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व आलेहि) ने फ़रमाया "ऐ सलमान! रजब के महीने में जो कोई मोमिन/मोमिना 30 रकअत पढ़ता है, अल्लाह उसके गुनाह बख़्श देता है और उसे उस शख़्स जैसा अज्र अता करता है जिसने पूरा महीना रोज़े रखे। वह आने वाले साल में अपनी नमाज़ में साबितक़दम रहने वालों में से हो जाता है। उसके लिए दिन के आमाल शहीद के आमाल के बराबर लिखे जाते हैं। उसे जंगे बद्र के शुहदा के साथ उठाया जाएगा। उसके लिए हर रोज़े के बदले एक साल की इबादत लिखी जाती है। उसका दर्जा 1000 मर्तबा बुलंद किया जाता है।"
उन्होंने कहा कि जिब्रील ने मुझे बताया "ऐ मुहम्मद! यह आपके और मुशरिकीन व मुनाफ़िक़ीन के दरमियान निशानी है, क्योंकि मुनाफ़िक़ यह नमाज़ अदा नहीं करता।"