रजब की दुआएँ व आमाल

माहे रजब-उल-मुरज्जब के आमाल
इस महीने की अहमियत

ये रजब के पूरे महीने में अदा किए जाने वाले आम आमाल हैं। दूसरे टैबों में रोज़मर्रा की दुआएँ और नमाज़ें दी गई हैं जिन्हें पढ़ा जाता है। रिवायात से यह मालूम होता है कि तौबा करना, रोज़ा रखना और कसरत से सदक़ा/ख़ैरात देना बहुत ज़्यादा पसंदीदा अमल है।
1.इमाम जा`फ़र अल-सादिक़ (अ) ने रसूलुल्लाह (स) से रिवायत की है कि आपने फ़रमाया: रजब मेरी उम्मत के लिए इस्तिग़फ़ार का महीना है; इसलिए तुम्हें चाहिए कि इस महीने में दूसरे महीनों के मुक़ाबले में नीचे दिए गए तरीक़े से बार-बार इस्तिग़फ़ार करो
أَسْتَغْفِرُ اللّه وَأَسْأَلُهُ التّوْبَة
अस्तग़फ़िरुल्लाह वा असअलुहुत्-तौबा<
मैं अल्लाह से मग़फ़िरत तलब करता हूँ और उससे दुआ करता हूँ कि वह मेरी तौबा क़बूल फ़रमाए।


2.रजब के महीने में तीन दिनों का रोज़ा रखना मुस्तहब है: जुमेरात, जुमा और हफ़्ता। रिवायत में आया है कि जो शख़्स हराम महीनों में से किसी एक महीने में इन तीन दिनों का रोज़ा रखे, उसे नौ सौ साल की इबादत का सवाब अता किया जाएगा।
रोज़े के आदाब / सवाब – इक़बाल (पीडीएफ)

3.अगर कोई शख़्स रजब के महीने में रोज़ा रखने में सक्षम न हो, तो वह इसके बदले रोज़ाना नीचे दी गई तस्बीहात को सौ (100) बार पढ़े:
سُبْحَانَ الإِلٰهِ ٱلْجَلِيلِ
सुब्हानल इलाहिल जलील
पाक है वह बहुत बुज़ुर्ग और अज़मत वाला ख़ुदा।
سُبْحَانَ مَنْ لا يَنْبَغِي ٱلتَّسْبِيحُ إِلاَّ لَهُ
सुब्हान मन ला यंबग़ीत्तस्बीह इल्ला लहू
पाक है वह, जिसके सिवा किसी और की तस्बीह करना जाइज़ नहीं।
سُبْحَانَ ٱلاعَزِّ ٱلاكْرَمِ
सुब्हानल अज़्ज़िल अकरम
पाक है वह, जो सबसे ज़्यादा इज़्ज़त और करम वाला है।
سُبْحَانَ مَنْ لَبِسَ ٱلْعِزَّ وَهُوَ لَهُ اهْلٌ
सुब्हान मन लबिसल इज़्ज़ा वहुवा लहू अह्लुन
पाक है वह, जिसने इज़्ज़त को ओढ़ लिया है और वही इसका हक़दार है।

4.रसूलुल्लाह (स) से रिवायत है कि जो शख़्स रजब के महीने में नीचे दी गई इस्तिग़फ़ार को सौ (100) बार पढ़े और उसके बाद सदक़ा दे, तो अल्लाह तआला उसकी ज़िंदगी का ख़ात्मा रहमत और मग़फ़िरत पर फ़रमाएगा। और जो इसे चार सौ (400) बार पढ़े, उसे सौ शहीदों का सवाब अता किया जाएगा।
اسْتَغْفِرُ ٱللَّهَ ٱلَّذِي لاَ إِلٰهَ إِلاَّ هُوَ
अस्तग़फ़िरुल्लाह अल्लज़ी ला इलाहा इल्ला हू<
मैं अल्लाह से मग़फ़िरत तलब करता हूँ, जिसके सिवा कोई माबूद नहीं,
وَحْدَهُ لا شَرِيكَ لَهُ
वह्दहू ला शरीक लहू
वह अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं,

وَاتُوبُ إِلَيْهِ
वा अतूबु इलैह
और मैं उसी की बारगाह में तौबा करता हूँ।


5.रसूलुल्लाह (स) से यह भी रिवायत है कि जो शख़्स रजब के महीने में इस कलिमा को हज़ार (1000) बार पढ़े, अल्लाह तआला उसके लिए एक लाख सवाब लिखेगा और जन्नत में उसे सौ घर अता फ़रमाएगा:
لاَ إِلٰهَ إِلاَّ ٱللَّهُ
ला इलाहा इल्लल्लाह
अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं।


6.एक हदीस में आया है कि जो शख़्स रजब के महीने में हर रोज़ सुबह 70 बार और शाम 70 बार नीचे दी गई इस्तिग़फ़ार पढ़े, अगर उसकी मौत रजब में हो जाए तो अल्लाह तआला उसे जन्नत में दाख़िल फ़रमाएगा और रजब की बरकत से जहन्नम की आग उसे नहीं छुएगी:
اسْتَغْفِرُ ٱللَّهَ وَاتُوبُ إِلَيْهِ
अस्तग़फ़िरुल्लाह वा अतूबु इलैह
मैं अल्लाह से मग़फ़िरत तलब करता हूँ और उसी की बारगाह में तौबा करता हूँ।

इसके बाद हाथ आसमान की तरफ़ उठाकर कहें:
اَللَّهُمَّ ٱغْفِرْ لِي وَتُبْ عَلَيَّ
अल्लाहुम्मग़फ़िर ली व तुब् अलैय्या<
ऐ अल्लाह! मुझे बख़्श दे और मेरी तौबा क़बूल फ़रमा।

7.रजब के महीने में अल्लाह तआला से मग़फ़िरत तलब करने के लिए नीचे दी गई इस्तिग़फ़ार को हज़ार (1000) बार पढ़ना मुस्तहब है, ताकि वह बख़्श दे:
اسْتَغْفِرُ ٱللَّهَ ذَاَ ٱلْجَلاَلِ وَٱلإِكْرَامِ
अस्तग़फ़िरुल्लाह ज़ल जलालि वल इकराम
मैं अल्लाह से मग़फ़िरत मांगता हूँ जो जलाल और इकराम वाला है,

مِنْ جَمِيعِ ٱلذُّنُوبِ وَٱلآثَامِ
मिन जमीइज़् ज़ुनूबि वल आसाम
ताकि वह मेरे तमाम गुनाहों और ग़लतियों को माफ़ फ़रमा दे।


(8) मग़फ़िरत के लिए नीचे दिए गए (i से x) आमाल को हर सुबह और शाम 3 बार दोहराएँ
i) सूरह फ़ातिहा , ii) आयतुल कुर्सी , iii) सूरह काफ़िरून , iv) सूरह तौहीद , v) सूरह फ़लक़ , vi) सूरह नास
vii)
سُبْحَانَ اللّهِ،وَالْحَمْدُ لِلّهِ،وَلا إلهَ إلاّ اللّهُ،وَاللّهُ أَكْبَرُ،وَلا حَوْلَ وَلا قُوَّةَ إلاّ بِاللّهِ الْعَلِيِّ الْعَظِيمِ.
सुब्हानल्लाहि वलहम्दुलिल्लाहि वला इलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर वला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलीय्यिल अज़ीम
तमाम पाकी अल्लाह के लिए है, सारी तारीफ़ अल्लाह के लिए है, अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, अल्लाह सबसे बड़ा है, और अल्लाह अली और अज़ीम के सिवा न कोई ताक़त है न कोई क़ुव्वत।

viii)
اللّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ
अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिव्व आले मुहम्मद
ऐ अल्लाह! मुहम्मद और आले मुहम्मद पर दरूद भेज।

ix)
اَللَّهُمَّ اغْفِرْ لِلْمُؤْمِنِينَ وَالمُؤْمِنَاتِ.
अल्लाहुम्मग़फ़िर लिल मोमिनीन वल मोमिनात
ऐ अल्लाह! तमाम मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों को बख़्श दे।

x)
أَسْتَغْفِرُ اللّهَ وَأَتُوبُ إلَيْهِ
अस्तग़फ़िरुल्लाह व अतूबु इलैह
मैं उसी की बारगाह में तौबा करता हूँ।


9.रिवायत में आया है कि रसूलुल्लाह (स) ने फ़रमाया: जो शख़्स रजब की किसी एक रात में सूरह तौहीद को 100 बार पढ़े, उसके लिए अल्लाह तआला के लिए सौ साल के रोज़े रखने का फ़ैसला किया जाएगा और अल्लाह तआला उसके लिए अंबिया में से किसी एक के क़रीब जन्नत में सौ महल अता फ़रमाएगा।
10.अहलेबैत (अ) के रौज़ों की ज़ियारत करें और ज़ियारत-ए-रजबिया पढ़ें।




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हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद पढ़ी जाने वाली दुआ "या मन अर्जूहू कुल्ला ख़ैर"- अलग पेज
- दुआ की तफ़सीर |पीडीएफ
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يَا مَنْ أَرْجُوهُ لِكُلِّ خَيْرٍ
या मन अर्जूहू लिकुल्ले ख़ैरिन
ऐ वह ज़ात, जिससे मैं हर भलाई की उम्मीद रखता हूँ

وآمَنُ سَخَطَهُ عِنْدَ كُلِّ شَرٍّ
वा आमनु सख़तहू इन्दा कुल्ले शर्रिन
और हर बुराई के वक़्त उसके ग़ज़ब से अमान चाहता हूँ

يَا مَنْ يُعْطِي ٱلْكَثِيرَ بِٱلْقَلِيلِ
या मन युअतीलकसीरा बिलक़लील
ऐ वह जो थोड़े से अमल पर बहुत अता फ़रमाता है

يَا مَنْ يُعْطِي مَنْ سَأَلَهُ
या मन युअती मन सअलहू
ऐ वह जो मांगने वाले को अता करता है

يَا مَنْ يُعْطي مَنْ لَمْ يَسْأَلْهُ وَمَنْ لَمْ يَعْرِفْهُ
या मन युअती मन लम यसअलहू व मन लम यअरिफहू
ऐ वह जो उसे भी देता है जो उससे मांगता नहीं और उसे पहचानता भी नहीं

تَحَنُّناً مِنْهُ وَرَحْمَةً
तहन्नुनन मिन्हू व रहमतन
यह उसकी मेहरबानी और रहमत की वजह से है

أَعْطِنِي بِمَسْأَلتِي إِيَّاكَ جَمِيعَ خَيْرِ ٱلدُّنْيَا
अअतिनी बिमसअलती इय्याका जमीअ ख़ैरिद्दुन्या
मेरी तुझसे दुआ के सदक़े मुझे दुनिया की तमाम भलाई अता फ़रमा

وَجَمِيعَ خَيْرِ ٱلآخِرَةِ
व जमीअ ख़ैरिल आख़िरह
और आख़िरत की भी सारी भलाई अता फ़रमा

وَٱصْرِفْ عَنّي بِمَسْأَلَتي إِيَّاكَ
वस्रिफ़ अन्नी बिमसअलती इय्याका
और मेरी इसी दुआ के बदले

جَميعَ شَرِّ ٱلدُّنْيا وَشَرِّ ٱلآخِرَة
जमीअ शर्रिद्दुन्या व शर्रिल आख़िरह
दुनिया और आख़िरत की तमाम बुराइयों को मुझसे दूर फ़रमा

فَإِنَّهُ غَيْرُ مَنْقُوصٍ مَا أَعْطَيْتَ
फ़इन्नहू ग़ैरु मनक़ूसिन मा अअतैता
क्योंकि तू जो कुछ अता करता है उसमें कोई कमी नहीं होती

وَزِدْنِي مِنْ فَضْلِكَ يَا كَرِيمُ
व ज़िदनी मिन फ़ज़्लिका या करीम
और ऐ करीम! अपने फ़ज़्ल से मुझे और ज़्यादा अता फ़रमा

रावी बयान करता है कि इसके बाद इमाम जाफ़र अस-सादिक़ (अ) ने इस दुआ को पढ़ते हुए अपने बाएँ हाथ से अपनी दाढ़ी पकड़ी और दाएँ हाथ की तर्जनी उँगली को लगातार हिलाते रहे। फिर आपने फ़रमाया:
يَا ذَاَ ٱلْجَلالِ وَٱلإِكْرَامِ
या ज़ल जलालि वल इकराम
ऐ जलाल और इकराम वाले!

يَا ذَاَ ٱلنَّعْمَاءِ وَٱلْجُودِ
या ज़न-नअमाई वल जूद
ऐ नेमतों और सख़ावत के मालिक!

يَا ذَاَ ٱلْمَنِّ وَٱلطَّوْلِ
या ज़ल मन्नि वत्तौल
ऐ एहसान और अता फ़रमाने वाले!

حَرِّمْ شَيْبَتِي عَلَىٰ ٱلنَّارِ
हर्रिम शैबती अलन-नार
मेरी सफ़ेद दाढ़ी को जहन्नम की आग पर हराम कर दे।


शैख़ अब्बास क़ुम्मी ने *मफ़ातीहुल जिनान* में लिखा है कि यह दुआ इमाम जाफ़र अस-सादिक़ (अ) से मंसूब है। सय्यद इब्न ताऊस रिवायत करते हैं कि मुहम्मद इब्न ज़कवान—जो अपने लंबे सज्दों की वजह से ‘अस-सज्जाद’ के नाम से मशहूर थे, और जिनके रोने की शिद्दत की वजह से उनकी आँखों की रौशनी जाती रही—ने इमाम जाफ़र अस-सादिक़ (अ) से अर्ज़ किया: “मैं आप पर क़ुर्बान जाऊँ! हम रजब के महीने में हैं; कृपया मुझे ऐसी दुआ सिखाइए जिसके ज़रिये अल्लाह तआला मेरी मदद फ़रमाए।” तब इमाम (अ) ने उनसे फ़रमाया कि ऊपर लिखी हुई दुआ को लिख लो।

इक़बाल आमाल :- नीचे दी गई दुआ अहमद इब्न मुहम्मद इब्न ईसा के ज़रिये, अबू जाफ़र इमाम बाक़िर (अ) से रिवायत की गई है रजब की हर रात नमाज़-ए-इशा के बाद:

اللَّهُمَّ إنِّي أَسْأَلُكَ بِأَنَّكَ مَلِكٌ
अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुका बिअन्नका मलिकुन
ऐ अल्लाह! मैं तुझसे इस हैसियत से सवाल करता हूँ कि तू बादशाह है,

وَأَنَّكَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ مُقْتَدِرٌ
व अन्नका अला कुल्ले शैइन मुक़्तदिरुन
और तू हर चीज़ पर पूरी क़ुदरत रखता है,

وَأَنَّكَ مَا تَشَاءُ مِنْ أَمْرٍ يَكُونُ
व अन्नका मा तशाऊ मिन अम्रिन यकूनु
और जो कुछ तू चाहता है वही होता है।

اللَّهُمَّ إِنِّي أَتَوَجَّهُ إِلَيْكَ بِنَبِيِّكَ مُحَمَّدٍ
अल्लाहुम्मा इन्नी अतवज्जहू इलैका बिनबिय्यिका मुहम्मदिन
ऐ अल्लाह! मैं तेरी बारगाह में तेरे नबी मुहम्मद (स) के वसीले से रुजू करता हूँ,

نَبِيِّ ٱلرَّحْمَةِ صَلَّىٰ ٱللَّهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ
नबिय्यिर्रह्मति सल्लल्लाहु अलैहि व आलेहि
जो रहमत के नबी हैं, जिन पर और जिनकी आल पर अल्लाह की रहमत हो।

يَا مُحَمَّدُ
या मुहम्मद
ऐ मुहम्मद!

يَا رَسُولَ ٱللَّهِ
या रसूलल्लाह
ऐ अल्लाह के रसूल!

إِنِّي أَتَوَجَّهُ بِكَ إِلَىٰ ٱللَّهِ رَبِّكَ وَرَبِّي
इन्नी अतवज्जहू बिका इलल्लाहि रब्बिका व रब्बी
मैं आपके वसीले से अल्लाह की बारगाह में अर्ज़ करता हूँ, जो आपका भी रब है और मेरा भी,

لِيُنْجِحَ لِي بِكَ طَلِبَتِي
लियुन्जिहा ली बिका तलिबती
ताकि वह मेरी दरख़्वास्त क़बूल फ़रमा ले।

اللَّهُمَّ بِنَبِيِّكَ مُحَمَّدٍ
अल्लाहुम्मा बिनबिय्यिका मुहम्मदिन
ऐ अल्लाह! तेरे नबी मुहम्मद (स) के वसीले से

وَٱلأَئِمَّةِ مِنْ أَهْلِ بَيْتِهِ
वलअइम्मति मिन अहले बैतिही
और उनकी अहलेबैत से इमामों के वसीले से,

صَلَّىٰ ٱللَّهُ عَلَيْهِ وَعَلَيْهِمْ
सल्लल्लाहु अलैहि व अलैहिम
जिन सब पर अल्लाह की रहमत हो,

أَنْجِحْ طَلِبَتِي
अन्जिह तलिबती
मेरी दरख़्वास्त क़बूल फ़रमा।


रजब के महीने की रोज़ाना दुआओं का पेज
रजब की सभी दुआओं का संयुक्त वीडियो


सभी दुआएँ एक ही एमपी3 में:


1.रिवायत में आया है कि इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अ) रजब के पहले दिन, जब आप क़ैद में थे, यह दुआ पढ़ा करते थे:



يَا مَنْ يَمْلِكُ حَوَائِجَ ٱلسَّائِلِينَ
या मन यम्लिकु हवाइज़स्साइलिन
ऐ वह ज़ात जो सवाल करने वालों की ज़रूरतों का मालिक है,

وَيَعْلَمُ ضَمِيرَ ٱلصَّامِتِينَ
व यअलमु ज़मीरा अस्सामितीन
और खामोश दिलों के भेद को भी जानता है!

لِكُلِّ مَسْأَلَةٍ مِنْكَ سَمْعٌ حَاضِرٌ
लिकुल्लि मसअलतिं मिंका सम्अुन हाज़िरुन
तेरे पास हर सवाल सुनने की पूरी मौजूदगी है,

وَجَوَابٌ عَتِيدٌ
व जवाबुन अतीदुन
और जवाब भी तुरंत तैयार रहता है।

اَللَّهُمَّ وَمَوَاعِيدُكَ ٱلصَّادِقَةُ
अल्लाहुम्मा व मवाइदुकस्सादिक़ा
ऐ अल्लाह! तेरे वादे सच्चे हैं,

وَأَيَادِيكَ ٱلْفَاضِلَةُ
व अयादिकल फ़ाज़िला
तेरे एहसान बहुत ज़्यादा हैं,

وَرَحْمَتُكَ ٱلْوَاسِعَةُ
व रहमतुकल वासिआ
और तेरी रहमत बहुत वसीअ है,

فَأَسْأَلُكَ أَنْ تُصَلِّيَ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ
फ़असअलुका अन तुसल्लिया अला मुहम्मदिव्व आले मुहम्मद
पस मैं तुझसे सवाल करता हूँ कि मुहम्मद और आले मुहम्मद पर दरूद भेज,

وَأَنْ تَقْضِيَ حَوَائِجِي لِلدُّنْيَا وَٱلآخِرَةِ
व अन तक़ज़िया हवाइजि लिद्दुन्या वल आख़िरह
और मेरी दुनिया और आख़िरत की तमाम ज़रूरतों को पूरा फ़रमा।

إنَّكَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
इन्नका अला कुल्ले शैइन क़दीरुन
यक़ीनन तू हर चीज़ पर क़ुदरत रखने वाला है।


2.रिवायत है कि इमाम जाफ़र अस-सादिक़ (अ) रजब के महीने में यह दुआ रोज़ाना पढ़ा करते थे:



خَابَ ٱلْوَافِدُونَ عَلَىٰ غَيْرِكَ
ख़ाबल वाफ़िदूना अला ग़ैरिका
तेरे सिवा किसी और के पास आने वाले नामुराद हो जाते हैं।

وَخَسِرَ ٱلْمُتَعَرِّضُونَ إِلاَّ لَكَ
व ख़सिरल मुतअर्रिदूना इल्ला लका
और तेरे सिवा किसी और की रज़ा चाहने वाले घाटे में रहते हैं;

وَضَٱعَ الْمُلِمُّونَ إِلاَّ بِكَ
व ज़ाअल मुलिम्मूना इल्ला बिका
और जो तुझे छोड़ कर किसी और को मक़सद बनाते हैं, वह तबाह हो जाते हैं;

وَأَجْدَبَ ٱلْمُنْتَجِعُونَ إِلاَّ مَنِ ٱنْتَجَعَ فَضْلَكَ
व अजदबल मुन्तजिऊना इल्ला मन इन्तजअ फ़ज़्लका
और तेरे फ़ज़्ल के सिवा कहीं और पनाह ढूँढने वाले बदहाली में पड़ जाते हैं।

بَابُكَ مَفْتُوحٌ لِلرَّاغِبِينَ
बाबुका मफ़तूहुन लिर्राग़िबीन
तेरा दरवाज़ा चाहने वालों के लिए खुला है,

وَخَيْرُكَ مَبْذُولٌ لِلطَّالِبِينَ
व ख़ैरुका मबज़ूलुन लित्तालिबीन
और तेरी भलाई मांगने वालों के लिए आम है,

وَفَضْلُكَ مُبَاحٌ لِلسَّائِلِينَ
व फ़ज़्लुका मुबाहुन लिस्साइलिन
और तेरा फ़ज़्ल सवाल करने वालों के लिए खुला हुआ है,

وَنَيْلُكَ مُتَاحٌ لِلآمِلِينَ
व नैलुका मुताहुन लिलआमिलीन
और तुझ तक पहुँचना उम्मीद रखने वालों के लिए मुमकिन है।

وَرِزْقُكَ مَبْسُوطٌ لِمَنْ عَصَاكَ
व रिज़्क़ुका मब्सूतुन लिमन असाका
यहाँ तक कि जो तेरी नाफ़रमानी करते हैं, उन पर भी तेरा रिज़्क़ फैला हुआ है।

وَحِلْمُكَ مُعْتَرِضٌ لِمَنْ نَاوَاكَ
व हिल्मुका मुतअर्रिदुन लिमन नावाका
और तेरा हिल्म उन तक भी पहुँचता है जो तुझसे दुश्मनी रखते हैं।

عَادَتُكَ ٱلإِحْسَانُ إلَىٰ ٱلْمُسِيئِينَ
आदतुका अल-इहसानु इला अल-मुसीईन
तेरी आदत है कि तू गुनहगारों पर भी एहसान करता है,

وَسَبِيلُكَ ٱلإِبْقَاءُ عَلَىٰ ٱلْمُعْتَدِينَ
व सबीलुका अल-इब्क़ाउ अला अल-मुतअदीना
और तेरा तरीक़ा है कि तू ज़्यादती करने वालों को भी मोहलत देता है।

اَللَّهُمَّ فَٱهْدِنِي هُدَىٰ ٱلْمُهْتَدِينَ
अल्लाहुम्मा फ़ह्दिनी हुदल-मुहतदीना
ऐ अल्लाह! मुझे उन लोगों की हिदायत अता फ़रमा जो हिदायत पाए हुए हैं,

وَٱرْزُقْنِي ٱجْتِهَادَ ٱلْمُجْتَهِدِينَ
वर्ज़ुक़नी इज्तिहादल-मुज्तहिदीन
और मुझे कोशिश करने वालों जैसी कोशिश की तौफ़ीक़ दे,

وَلاَ तَجْعَلْنِي مِنَ ٱلْغَافِلِينَ ٱلْمُبْعَدِينَ
व ला तजअलनी मिनल-ग़ाफ़िलीन अल-मुबअदीन
और मुझे उन ग़ाफ़िलों में शामिल न कर जिन्हें तुझसे दूर कर दिया गया है,

وَٱغْفِرْ لِي يَوْمَ ٱلدِّينِ
वग़फ़िर ली यौमद-दीन
और मुझे रोज़-ए-जज़ा के दिन बख़्श देना।


3.शैख़ तूस़ी ने अपनी किताब *अल-मिस्बाह* में ज़िक्र किया है कि अल-मुअल्ला इब्न खुनेस ने इमाम जाफ़र अस-सादिक़ (अ) से रिवायत की है कि आपने फ़रमाया: “रजब के महीने में यह दुआ पढ़ी जा सकती है।” इसी तरह सय्यद इब्न ताऊस अल-हसनी ने भी अपनी किताब *इक़बालुल आमाल* में इसका ज़िक्र किया है। रिवायत के मुताबिक़ यह दुआ बहुत ही जामे (सम्पूर्ण) है और इसे किसी भी वक़्त पढ़ना मुस्तहब है।



اَللَّهُمَّ إنّي أَسْأَلُكَ صَبْرَ ٱلشَّاكِرِينَ لَكَ
अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुका सब्रश्-शाकिरीन लका
ऐ अल्लाह! मैं तुझसे उन लोगों जैसा सब्र मांगता हूँ जो हमेशा तेरा शुक्र अदा करते हैं,

وَعَمَلَ ٱلْخَائِفِينَ مِنْكَ
व अमलल-ख़ाइफ़ीना मिंका
और उन लोगों जैसा अमल जो तुझसे डरते हैं,

وَيَقِينَ ٱلْعَابِدِينَ لَكَ
व यक़ीनल-आबिदीना लका
और उन लोगों जैसा यक़ीन जो ख़ुलूस के साथ तेरी इबादत करते हैं।

اَللَّهُمَّ أَنْتَ ٱلْعَلِيُّ ٱلْعَظِيمُ
अल्लाहुम्मा अंता अल-अलिय्युल अज़ीम
ऐ अल्लाह! तू बुलंद और अज़मत वाला है,

وَأَنَا عَبْدُكَ ٱلْبَائِسُ ٱلْفَقِيرُ
व अना अब्दुकल-बाइसल-फ़क़ीर
और मैं तेरा बेबस और मोहताज बंदा हूँ।

أَنْتَ ٱلْغَنِيُّ ٱلْحَمِيدُ
अंता अल-ग़निय्युल-हमीद
तू बेनियाज़ और हर तारीफ़ के क़ाबिल है,

وَأَنَا ٱلْعَبْدُ ٱلذَّلِيلُ
व अना अल-अब्दुज़्-ज़लील
और मैं अदना और आज़िज़ बंदा हूँ।

اَللَّهُمَّ صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِهِ
अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिव्व आलेहि
ऐ अल्लाह! मुहम्मद और उनकी आल पर दरूद भेज,

وَٱمْنُنْ بِغِنَاكَ عَلَىٰ فَقْرِي
वम्नुं बि-ग़िनाका अला फ़क़्री
और अपनी बेनियाज़ी से मेरी तंगी को दूर फ़रमा,

وَبِحِلْمِكَ عَلَىٰ جَهْلِي
व बिहिल्मिका अला जहली
और अपनी हिल्म से मेरी नादानी को ढक ले,

وَبِقُوَّتِكَ عَلَىٰ ضَعْفِي
व बिक़ुव्वतिका अला ज़अफ़ी
और अपनी क़ुदरत से मेरी कमज़ोरी को मज़बूती में बदल दे,

يَا قَوِيُّ يَا عَزِيزُ
या क़विय्यु या अज़ीज़
ऐ सबसे ताक़तवर! ऐ सबसे ग़ालिब!

اَللَّهُمَّ صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِهِ
अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिव्व आलेहि
ऐ अल्लाह! मुहम्मद और उनकी आल पर दरूद भेज;

ٱلأَوْصِيَاءِ ٱلْمَرْضِيِّينَ
अल-अव्सियाइल-मरज़िय्यीन
जो पसंदीदा औलिया और जानशीन हैं;

وَٱكْفِنِي مَا أَهَمَّنِي مِنْ أَمْرِ ٱلدُّنْيَا وَٱلآخِرَةِ
वक्फ़िनी मा अहमन्नी मिन अम्रिद्दुन्या वल आख़िरह
और दुनिया व आख़िरत के जिन उमूर ने मुझे परेशान कर रखा है, उनसे मुझे काफ़ी फ़रमा।

يَا أَرْحَمَ ٱلرَّاحِمِينَ
या अरहमर-राहिमीन
ऐ सबसे बढ़कर रहम करने वाले!

4.शैख़ तूस़ी ने यह भी ज़िक्र किया है कि रजब के महीने में यह दुआ रोज़ाना पढ़ी जाती है:
यह दुआ तौहीद (अल्लाह की यकताई) से संबंधित मफ़ाहीम पर मुश्तमिल है।
इसमें अल्लाह (सुब्हानहू व तआला) को ऐसे अंदाज़ में बयान किया गया है जिसे बयान करना हमारे लिए मुमकिन नहीं।



اَللَّهُمَّ يَا ذَاَ ٱلْمِنَنِ ٱلسَّابِغَةِ
अल्लाहुम्मा या ज़ल मिननिस्साबिग़ह
ऐ अल्लाह! ऐ तमाम मुकम्मल नेमतों के मालिक,

وَٱلآلاَءِ ٱلْوَازِعَةِ
वल आलाइ अल-वाज़िआ
और बड़ी बड़ी अता और इनायतों के मालिक,

وَٱلرَّحْمَةِ ٱلْوَاسِعَةِ
वल रहमतिल-वासिआ
और वसीअ रहमत वाले,

وَٱلْقُدْرَةِ ٱلْجَامِعَةِ
वल क़ुदरतिल-जामिआ
और हर चीज़ को घेर लेने वाली क़ुदरत वाले,

وَٱلنِّعَمِ ٱلْجَسِيمَةِ
वल निअमिल-जसीमा
और अज़ीम नेमतों वाले,

وَٱلْمَوَاهِبِ ٱلْعَظِيمَةِ
वल मवाहिबिल-अज़ीमा
और बड़े बड़े तोहफ़ों वाले,

وَٱلأَيَادِي ٱلْجَمِيلَةِ
वल अयादिल-जमीला
और खूबसूरत एहसानों वाले,

وَٱلْعَطَايَا ٱلْجَزِيلَةِ
वल अतायाल-जज़ीला
और कसरत से अता फ़रमाने वाले!

يَا مَنْ لا يُنْعَتُ بِتَمْثِيلٍ
या मन ला युनअतु बि-तम्थील
ऐ वह जो किसी मिसाल से बयान नहीं किया जा सकता,

وَلاَ يُمَثَّلُ بِنَظِيرٍ
व ला युमथ्थलु बि-नज़ीर
और न ही किसी की मिस्ल ठहराया जा सकता है,

وَلاَ يُغْلَبُ بِظَهِيرٍ
व ला युग़्लबु बि-ज़हीर
और न ही किसी मददगार के सहारे उस पर ग़लबा पाया जा सकता है।

يَا مَنْ خَلَقَ فَرَزَقَ
या मन खलक़ा फ़रज़क़ा
ऐ वह जिसने पैदा किया फिर रिज़्क़ अता किया,

وَأَلْهَمَ فَأَنْطَقَ
व अल्हमा फ़अंतक़ा
और इल्हाम किया फिर बोलने की तौफ़ीक़ दी,

وَٱبْتَدَعَ فَشَرَعَ
वब्तदअ फ़शरअ
और इजाद किया फिर उसे जारी किया,

وَعَلاَ فَٱرْتَفَعَ
व अला फ़रताफ़अ
और बुलंद हुआ फिर और भी ऊँचा हो गया,

وَقَدَّرَ فَأَحْسَنَ
व क़द्दरा फ़अह्सन
और अंदाज़ा मुक़र्रर किया फिर उसे बेहतरीन बनाया,

وَصَوَّرَ فَأَتْقَنَ
व सव्वरा फ़अत्क़न
और सूरत बनाई फिर उसे मुकम्मल/बेहतरीन किया,

وَٱحْتَجَّ فَأَبْلَغَ
वहतज्जा फ़अब्लग़
और दलील को कायम किया फिर उसे पूरी तरह पहुँचा दिया,

وَأَنْعَمَ فَأَسْبَغَ
व अनअमा फ़अस्बग़
और नेमत अता की फिर उसे भरपूर कर दिया,

وَأَعْطَىٰ فَأَجْزَلَ
व अअता फ़अजज़ला
और भरपूर बदला अता फ़रमाया,

وَمَنَحَ فَأَفْضَلَ
व मनहा फ़अफ़ज़ला
और बड़े करम के साथ नेमतें अता कीं!

يَا مَنْ سَمَا فِي ٱلْعِزِّ
या मन समा फ़िल-इज़्ज़
ऐ वह जो इज़्ज़त और क़ुदरत में बहुत बुलंद है

فَفَاتَ نَوَاظِرَ ٱلأَبْصَارِ
फ़फ़ाता नवाज़िरल-अबसार
यहाँ तक कि निगाहें उसे पा नहीं सकतीं,

وَدَنَا فِي ٱللُّطْفِ
व दना फ़िल-लुत्फ़
और लुत्फ़ व करम में इतना क़रीब है

فَجَازَ هَوَاجِسَ ٱلأَفْكَارِ
फ़जाज़ा हवाजिसल-अफ़कार
कि ख़यालों की हर हद से आगे निकल जाता है!

يَا مَنْ تَوَحَّدَ بِٱلْمُلْكِ
या मन तवह्हदा बिल-मुल्क
ऐ वह जो अपनी बादशाही में यकता है

فَلاَ نِدَّ لَهُ فِي مَلَكُوتِ سُلْطَانِهِ
फ़ला निद्ध लहू फ़ी मलाकूतِ सुल्तानिही
कि उसकी सल्तनत में उसका कोई शरीक नहीं,

وَتَفَرَّدَ بِٱلآلاَءِ وَٱلْكِبْرِيَاءِ
व तफ़र्रदा बिल-आलाई वल-किब्रिया
और नेमतों व अज़मत में वह बिल्कुल बेमिसाल है,

فَلاَ ضِدَّ لَهُ فِي جَبَرُوتِ شَأْنِهِ
फ़ला ज़िद्ध लहू फ़ी जबरूतِ शानिही
कि उसकी क़ुदरत के सामने कोई मुक़ाबिल नहीं!

يَا مَنْ حَارَتْ فِي كِبْرِيَاءِ هَيْبَتِهِ دَقَائِقُ لَطَائِفِ ٱلأَوْهَامِ
या मन हारत फ़ी किब्रिया-ए हैबतिही दक़ाइक़ु लताइफ़िल-अवहाम
ऐ वह जिसकी हैबत और अज़मत में वहम की बारीकियाँ भी हैरान रह जाती हैं,

وَٱنْحَسَرَتْ دُونَ إِدْرَاكِ عَظَمَتِهِ خَطَائِفُ أَبْصَارِ ٱلأَنَامِ
वन्हसरत दूना इद्राक़ि अज़मतिही ख़ताइफ़ु अबसारिल-अनाम
और उसकी अज़मत को पाने से पहले ही मख़लूक़ की निगाहें थक जाती हैं!

يَا مَنْ عَنَتِ ٱلْوُجُوهُ لِهَيْبَتِهِ
या मन अनतिल-वुजूहु लिहैबतिही
ऐ वह जिसके रौब व हैबत के सामने सारे चेहरे झुक जाते हैं,

وَخَضَعَتِ ٱلرِّقَابُ لِعَظَمَتِهِ
व ख़ज़अतिर-रिक़ाबु लिअज़मतिही
और जिसकी अज़मत के आगे सारी गर्दनें झुक जाती हैं,

وَوَجِلَتِ ٱلْقُلُوبُ مِنْ خِيفَتِهِ
व वजिलतिल-क़ुलूबु मिन ख़ीफ़तिही
और जिसके ख़ौफ़ से दिल काँप उठते हैं!

أَسْأَلُكَ بِهٰذِهِ ٱلْمِدْحَةِ ٱلَّتِي لا تَنْبَغِي إِلاَّ لَكَ
असअलुका बिहाज़िहिल-मिद्हतिल्लती ला तनबग़ी इल्ला लका
मैं तुझसे इस हम्द व सना के वसीले से सवाल करता हूँ जो तेरे सिवा किसी के लिए ज़ेबा नहीं,

وَبِمَا وَأَيْتَ بِهِ عَلَىٰ نَفْسِكَ لِدَاعِيكَ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ
व बिमा वअयता बिही अला नफ़्सिका लिदाइका मिनल-मोमिनीन
और उस वादे के वसीले से जो तूने अपने ऊपर मोमिनों के लिए, जो तुझे पुकारते हैं, लाज़िम कर लिया है,

وَبِمَا ضَمِنْتَ ٱلإِجَابَةَ فِيهِ عَلَىٰ نَفْسِكَ لِلدَّاعِينَ
व बिमा ज़मिन्तल-इजाबता फ़ीही अला नफ़्सिका लिद्दाइीन
और उस ज़िम्मेदारी के वसीले से जो तूने दुआ करने वालों की दुआ क़बूल करने के लिए अपने ऊपर ली है।

يَا أَسْمَعَ ٱلسَّامِعِينَ
या असमअस-सामिईन
ऐ सबसे ज़्यादा सुनने वाले!

وَأَبْصَرَ ٱلنَّاظِرِينَ
व अबसरन-नाज़िरीन
और सबसे ज़्यादा देखने वाले!

وَأَسْرَعَ ٱلْحَاسِبِينَ
व असरअल-हासिबीन
और सबसे तेज़ हिसाब लेने वाले!

يَا ذَاَ ٱلْقُوَّةِ ٱلْمَتِينَ
या ज़ल-क़ुव्वतिल-मतीन
ऐ क़ुव्वत और मज़बूती वाले!

صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ خَاتَمِ ٱلنَّبِيِّينَ وَعَلَىٰ أَهْلِ بَيْتِهِ
सल्लि अला मुहम्मदिन ख़ातमिन-नबिय्यीना व अला अहले बैतिही
मुहम्मद पर, जो नबियों के ख़ातिम हैं, और उनकी आल पर दरूद भेज,

وَٱقْسِمْ لِي فِي شَهْرِنَا هٰذَا خَيْرَ مَا قَسَمْتَ
वक़्सिम ली फ़ी शहरिना हाज़ा ख़ैरा मा क़सम्ता
और हमारे इस महीने में मेरे लिए वही बेहतरीन हिस्सा मुक़र्रर फ़रमा जो तूने किसी के लिए मुक़र्रर किया है,

وَٱحْتِمْ لِي فِي قَضَائِكَ خَيْرَ مَا حَتَمْتَ
वह्तिम ली फ़ी क़ज़ाइका ख़ैरा मा हतम्ता
और अपने फ़ैसलों में मेरे लिए वही बेहतरीन फ़ैसला मुक़र्रर फ़रमा जो तूने दूसरों के लिए मुक़र्रर किया है,

وَٱخْتِمْ لِي بَٱلسَّعَادَةِ فِيمَنْ خَتَمْتَ
वख़्तिम ली बिस्सआदति फीमन ख़तम्ता
और जिन लोगों की ज़िंदगी तू खुशहाली पर ख़त्म करता है, उन्हीं के साथ मेरी ज़िंदगी का भी ख़ातिमा फ़रमा,

وَأَحْيِنِي مَا أَحْيَيْتَنِي مَوْفُوراً
व अह्यिनी मा अह्यैतनी मौफ़ूरन
जब तक तू मुझे ज़िंदा रखे, मुझे भरपूर और बेहतर ज़िंदगी अता फ़रमा,

وَأَمِتْنِي مَسْرُوراً وَمَغْفُوراً
व अमितनी मस्रूरन व मग़फ़ूरन
और मुझे इस हाल में मौत दे कि मैं खुश भी रहूँ और बख़्शा हुआ भी रहूँ,

وَتَوَلَّ أَنْتَ نَجَاتِي مِنْ مُسَاءَلَةِ ٱلبَرْزَخِ
व तवल्ला अन्ता नजाति मिन मुसाअलतिल-बरज़ख़
और बरज़ख़ की पूछताछ से मेरी निजात की ज़िम्मेदारी तू ख़ुद संभाल लेना,

وَٱدْرأْ عَنِّي مُنكَراً وَنَكِيراً
वद्रअ अन्नी मुंकरन व नकीरन
और मुझसे मुनकर और नकीर को दूर रख,

وَأَرِ عَيْنِي مُبَشِّراً وَبَشِيراً
व अरि ऐनी मुबश्शिरन व बशीरन
और मेरी आँखों के सामने मुबश्शिर और बशीर को लाकर खड़ा कर,

وَٱجْعَلْ لِي إِلَىٰ رِضْوَانِكَ وَجِنَانِكَ مَصِيراً
वजअल ली इला रिज़वानिका व जिनानिका मसीरन
और मेरा ठिकाना अपनी रज़ा और अपनी जन्नतों की तरफ़ बना दे,

وَعَيْشاً قَرِيراً
व ऐशन क़रीरन
और मुझे सुकून और चैन की ज़िंदगी अता फ़रमा,

وَمُلْكاً كَبِيراً
व मुल्कन कबीरन
और बहुत बड़ी बादशाही अता फ़रमा,

وَصَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِهِ كَثِيراً
व सल्लि अला मुहम्मदिव्व आलेहि कसीरन
और मुहम्मद और उनकी आल पर बहुत ज़्यादा दरूद भेज।


वसीले
यह दुआ सय्यद इब्न ताऊस ने अपनी किताब ‘इक़बालुल आमाल’ में ‘मआलिमुद्दीन’ की किताब से मुहम्मद इब्न अबी अर-रवाद अर-रवासी से मुहम्मद इब्न जाफ़र अद-दह्हान के हवाले से इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु तआला फ़रजहुश्शरीफ़) से रिवायत की है। हवाला: इक़बालुल आमाल, पृष्ठ 644; अल-मज़ार अल-कबीर, पृष्ठ 179; मिस्बाहुज़-ज़ाएर, पृष्ठ 56; बिहारुल अनवार, जिल्द 98, पृष्ठ 391; सह़ीफ़ा अल-महदी, पृष्ठ 188। (यह दुआ मस्जिद सअसा में भी पढ़ी जाती है।)

दुआ का बैकग्राउंड – अन-नज्मुस साक़िब से

वाक़िआ नंबर अट्ठाईस: रजब के महीने में मस्जिद सअसा में इमाम (अ.स.) द्वारा पढ़ी गई दुआ
अज़ीज़ सय्यद अली बिन ताऊस ने अपनी किताब *इक़बाल* में मुहम्मद बिन अबिल रुवाद रवासी से रिवायत की है कि उन्होंने कहा:
वह रजब के महीने के एक दिन मुहम्मद बिन जाफ़र दह्हान के साथ मस्जिद सहला की तरफ़ निकले।
उन्होंने कहा: मुझे मस्जिद सअसा ले चलो, क्योंकि यह एक मुबारक मस्जिद है और अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) ने वहाँ नमाज़ अदा की है और हुज्जतों ने उन मुबारक मुक़ामात पर क़दम रखा है।
इस पर मेरा दिल उस मस्जिद की तरफ़ माइल हो गया। मैं वहाँ नमाज़ अदा कर रहा था कि मैंने देखा एक शख़्स ऊँट से उतरा और उसे साए में बाँध दिया। फिर वह अंदर दाख़िल हुआ और दो रकअत नमाज़ अदा की और उन दोनों रकअतों को बहुत तवील किया। फिर उसने अपने हाथ उठाए और इस तरह दुआ पढ़ी: “अल्लाहुम्मा या ज़ल मिन्ना…” आख़िर तक… फिर वह उठा, अपने ऊँट के पास गया और उस पर सवार हो गया।
इब्ने जाफ़र दह्हान ने मुझसे कहा: क्या मैं खड़ा न हो जाऊँ और उसके पास न जाऊँ? क्या मैं उससे यह न पूछूँ कि वह कौन है?
तो हम खड़े हुए और उसके पास गए। फिर हमने उससे कहा: हम तुम्हें अल्लाह का वास्ता देते हैं, हमें बताओ कि तुम कौन हो?
उसने जवाब दिया: मैं तुम्हें अल्लाह तआला का वास्ता देता हूँ, तुम क्या समझते हो कि मैं कौन हूँ?
इब्ने जाफ़र दह्हान ने जवाब दिया: मेरा ख़याल है कि आप ख़िज़्र हैं। फिर उसने पूछा: क्या तुमने भी ऐसा ही सोचा है?
मैंने जवाब दिया: मैंने भी यही सोचा कि आप ख़िज़्र हैं।
उसने कहा: अल्लाह की क़सम! मैं वही हूँ जिसे ख़िज़्र भी देखने का मुहताज है। लौट जाओ, क्योंकि मैं तुम्हारे ज़माने का इमाम हूँ।

शैख़ मुहम्मद बिन मशहदी ने अपनी किताब *मज़ार कबीेर* (पृष्ठ 144–146) में और शैख़ शहीद अव्वल ने *मज़ार* (पृष्ठ 264–266) में अली बिन मुहम्मद बिन अब्दुर्रहमान शुस्तरी से रिवायत की है कि उन्होंने कहा: मैं बनी रवास क़बीले के पास से गुज़रा।
कुछ भाइयों ने कहा: काश! तुम हमें मस्जिद सअसा ले चलो ताकि हम वहाँ नमाज़ अदा कर सकें, क्योंकि यह रजब का महीना है और इस महीने उस मुक़ाम की ज़ियारत करना मुस्तहब है, क्योंकि इन मुक़ामात से इमाम गुज़र चुके हैं, इन्हीं जगहों पर नमाज़ अदा की है और मस्जिद सअसा उन्हीं मुक़ामात में से एक है। इस तरह हम उस मस्जिद की तरफ़ माइल हो गए कि अचानक हमने देखा एक ऊँट जिसके पैर बँधे हुए थे और वह मस्जिद के दरवाज़े पर सो रहा था। हम अंदर दाख़िल हुए तो अचानक हमने देखा एक शख़्स हिजाज़ी लिबास में, जिसके सर पर हिजाज़ के लोगों जैसा अमामा था। वह बैठा हुआ था और यह दुआ पढ़ रहा था, जिसे मैंने और मेरे साथी ने याद कर लिया; वह दुआ यह है:
“अल्लाहुम्मा या ज़ल मेनानिस-साबिग़ा… वग़ैरह”
फिर उसने सज्दा बहुत तवील किया। इसके बाद वह उठा, अपने ऊँट पर सवार हुआ और चला गया। मेरे साथी ने कहा: मेरा ख़याल है कि वह ख़िज़्र थे। फिर हमारे साथ क्या हुआ कि हम उनसे बात भी न कर सके? हमारी ज़बान बंद हो गई थी।
हम बाहर निकले और इब्ने अबिल रुवाद रवासी से मुलाक़ात हुई। उन्होंने पूछा: तुम कहाँ से आ रहे हो?
हमने जवाब दिया: मस्जिद सअसा से, और हमने पूरा वाक़िआ बयान कर दिया। उन्होंने कहा: यह ऊँट सवार हर दो या तीन दिन में मस्जिद सअसा आता है और वह किसी से बात नहीं करता।
हमने पूछा: वह कौन है?
उन्होंने पूछा: तुम क्या समझते हो कि वह कौन है?
हमने कहा: हमें लगा कि वह ख़िज़्र हैं।
तो उन्होंने कहा: अल्लाह की क़सम! मैं किसी ऐसे शख़्स को नहीं जानता जिसे देखने के लिए ख़िज़्र मोहताज हों। हिदायत और रहनुमाई के साथ लौट जाओ।
मेरे साथी ने मुझसे कहा: अल्लाह की क़सम! वही ज़माने के मालिक (इमाम-ए-ज़माना अ.स.) हैं।
मुसन्निफ़ कहते हैं: ज़ाहिर तौर पर ये दो अलग-अलग वाक़िआत हैं और दो बार इस दुआ को रजब के महीने में उसी मस्जिद में इमाम (अ.स.) से सुना गया है, ख़ास तौर पर अली बिन मुहम्मद शुस्तरी द्वारा, इस अंदाज़ में कि हज़रत ने उनसे कलाम भी किया और उन्होंने भी इमाम से बातचीत की।
मशहूर उलमा ने इस दुआ को मस्जिद सअसा की मशहूर इबादतों में शुमार किया है और रजब के महीने के आमाल व दुआओं की किताबों में इसे शामिल किया है।
ऐसा मालूम होता है कि इमाम (अ.स.) का इस दुआ को पढ़ना एक ख़ास मुक़ाम; मस्जिद सअसा, और एक ख़ास वक़्त; रजब से मुताल्लिक़ था।
हालाँकि यह भी ज़ाहिर होता है कि यह दुआ मुतलक़ दुआओं में से है और इसके लिए वक़्त और मुक़ाम की कोई पाबंदी नहीं है।

5.शैख़ तूस़ी ने रिवायत की है कि नीचे दी गई मुक़द्दस तौक़ी (दस्तख़ती ख़त) – इमाम महदी (अज्जलल्लाहु तआला फ़रजहुश्शरीफ़) की ओर से, उनके नायब शैख़ अबू-जाफ़र मुहम्मद बिन उस्मान बिन सईद तक पहुँची थी:
रजब के महीने के हर दिन यह दुआ पढ़ी जा सकती है:




بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمٰنِ ٱلرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम करने वाला है।

اَللَّهُمَّ إنِّي أَسْأَلُكَ بِمَعَانِي جَمِيعِ مَا يَدْعُوكَ بِهِ وُلاةُ أَمْرِكَ
अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुका बि मआनी जमीई मा यदऊका बिही वुलातु अम्रिका
ऐ अल्लाह! मैं तुझसे तेरे तमाम नुमाइंदों की उन दुआओं के मआनी के वसीले से सवाल करता हूँ जिनके ज़रिये वे तुझे पुकारते हैं,

ٱلْمَأْمُونُونَ عَلَىٰ سِرِّكَ
अल-मामूनूना अला सिर्रिका
जो तेरे राज़ के अमीन हैं,

ٱلْمُسْتَبْشِرُونَ بأَمْرِكَ
अल-मुस्तबशिरूना बि-अम्रिका
जो तेरे हुक्म से खुश होते हैं,

ٱلْوَاصِفُونَ لِقُدْرَتِكَ
अल-वासिफूना लि-क़ुदरतिका
जो तेरी क़ुदरत का बयान करते हैं,

ٱلْمُعْلِنُونَ لِعَظَمَتِكَ
अल-मुअलिनूना लि-अज़मतिका
और जो तेरी अज़मत को एलानिया ज़ाहिर करते हैं।

أَسْأَلُكَ بِمَا نَطَقَ فِيهِمْ مِنْ مَشِيئَتِكَ
असअलुका बिमा नतका फ़ीहिम मिन मशीयतिका
मैं तुझसे तेरी उस मशीयत के वसीले से सवाल करता हूँ जो उनमें ज़ाहिर हुई,

فَجَعَلْتَهُمْ مَعَادِنَ لِكَلِمَاتِكَ
फ़जा-अल्तहुम मआदिन लि-कलीमातिका
तो तूने उन्हें अपने कलाम के ख़ज़ाने बना दिया,

وَأَرْكَاناً لِتَوْحِيدِكَ
व अरकानन लि-तौहीदिका
और अपनी तौहीद के सुतून क़रार दिया,

وَآيَاتِكَ وَمَقَامَاتِكَ الَّتِي لا تَعْطِيلَ لَهَا فِي كُلِّ مَكَانٍ
व आयातिका व मक़ामातिका अल्लती ला तअतील लहा फी कुल्लि मकानिन
और उन्हें अपनी निशानियाँ और अपने मक़ामात बनाया जो हर जगह कभी मुअत्तल नहीं होते,

يَعْرِفُكَ بِهَا مَنْ عَرَفَكَ
यअरिफुका बिहा मन अरफ़का
इन्हीं के ज़रिये तुझे वही पहचानते हैं जो तुझे पहचानते हैं।

لا فَرْقَ بَيْنَكَ وَبَيْنَهَا إِلاَّ أَنَّهُمْ عِبَادُكَ وَخَلْقُكَ
ला फ़र्क़ा बैनका व बैनहा इल्ला अन्नहुम इबादुका व ख़ल्क़ुका
तेरे और उनके दरमियान कोई फ़र्क़ नहीं सिवाय इसके कि वे तेरे बंदे और तेरी मख़लूक़ हैं।

فَتْقُهَا وَرَتْقُهَا بِيَدِكَ
फ़त्क़ुहा व रत्क़ुहा बियदिका
उनका खोलना और जोड़ना तेरे ही हाथ में है,

بَدْؤُهَا مِنْكَ وَعَوْدُهَا إلَيْكَ
बदउहा मिंका व औदुहा इलैका
उनकी शुरुआत तुझसे है और उनकी वापसी भी तेरी ही तरफ़ है।

أَعْضَادٌ وَأَشْهَادٌ
अअ़दादुन व अशहादुन
वे मददगार और गवाह हैं,

وَمُنَاةٌ وَأَذْوَادٌ
व मुनातून व अज़वादुन
और योजना बनाने वाले तथा रक्षा करने वाले हैं,

وَحَفَظَةٌ وَرُوَّادٌ
व हफ़ज़तुन व रुव्वादुन
और निगहबान तथा रहनुमा हैं,

فَبِهِمْ مَلَأْتَ سَمَاءَكَ وَأَرْضَكَ
फ़बिहिम मलअता समाअक व अरद़क
जिनके ज़रिये तूने अपने आसमान और ज़मीन को भर दिया,

حَتَّىٰ ظَهَرَ أَنْ لاَ إِلٰهَ إِلاَّ أَنْتَ
हत्ता ज़हरा अन ला इलाहा इल्ला अंत
यहाँ तक कि यह ज़ाहिर हो गया कि तेरे सिवा कोई माबूद नहीं है।

فَبِذٰلِكَ أَسْأَلُكَ
फ़बिज़ालिका असअलुका
तो इसी के वसीले से मैं तुझसे सवाल करता हूँ,

وَبِمَوَاقِعِ ٱلْعِزِّ مِنْ رَحْمَتِكَ
व बिमवाक़ेइल इज़्ज़ि मिर रहमतिका
और तेरी रहमत से मिलने वाली इज़्ज़त और क़ुव्वत के मक़ामात के वसीले से,

وَبِمَقَامَاتِكَ وَعَلامَاتِكَ
व बिमक़ामातिका व अलामातिका
और तेरे मक़ामात और निशानियों के वसीले से,

أَنْ تُصَلِّيَ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِهِ
अन तुसल्लिया अला मुहम्मदिन व आलिही
कि तू मुहम्मद और उनकी आल पर दरूद भेजे,

وَأَنْ تَزِيدَنِي إِيـمَاناً وَتَثْبِيتاً
व अन तज़ीदनी ईमानन व तस्बीतन
और मेरे ईमान और साबित-क़दमी में इज़ाफ़ा फरमा।

يَا بَاطِناً فِي ظُهُورِهِ
या बातिनन फी ज़ुहूरिही
ऐ वह ज़ात जो अपने ज़ुहूर ही में पोशीदा है!

وَظَاهِراً فِي بُطُونِهِ وَمَكْنُونِهِ
व ज़ाहिरन फ़ी बुतूनिही व मक़नूनिही
ऐ वह जो अपनी पोशीदगी में भी ज़ाहिर है और अपनी छुपी हुई हैसियत में भी!

يَا مُفَرِّقاً بَيْنَ ٱلنُّورِ وَٱلدَّيجُورِ
या मुफ़र्रिक़न बैनन नूरि वद्दैजूरी
ऐ वह जो नूर और तारीकी के दरमियान फ़र्क़ करने वाला है!

يَا مَوْصُوفاً بِغَيْرِ كُنْهٍ
या मौसूफ़न बि-ग़ैरि कुनहिन
ऐ वह जिसकी तारीफ़ उसकी असली हक़ीक़त जाने बग़ैर की जाती है!

وَمَعْرُوفاً بِغَيْرِ شِبْهٍ
व मअरूफ़न बि-ग़ैरि शिब्हिन
और जिसे बिना किसी मिसाल के पहचाना जाता है!

حَادَّ كُلِّ مَحْدُودٍ
हाद्द क़ुल्लि महदूदिन
ऐ हर हद में बंधी चीज़ की हद तय करने वाले!

وَشَاهِدَ كُلِّ مَشْهُودٍ
व शाहिद क़ुल्लि मशहूदिन
और हर मौजूद चीज़ पर गवाह रहने वाले!

وَمُوجِدَ كُلِّ مَوْجُودٍ
व मोजिद क़ुल्लि मौजूदिन
और हर मौजूद चीज़ को वजूद देने वाले!

وَمُحْصِيَ كُلِّ مَعْدُودٍ
व मुह्सिय क़ुल्लि मअदूदिन
और हर गिनी जाने वाली चीज़ को जानने वाले!

وَفَاقِدَ كُلِّ مَفْقُودٍ
व फ़ाक़िद क़ुल्लि मफ़क़ूदिन
और हर खोई हुई चीज़ से वाक़िफ़ रहने वाले!

لَيْسَ دُونَكَ مِنْ مَعْبُودٍ
लैसा दूनक मिन मअबूदिन
तेरे सिवा कोई मअबूद नहीं है।

أَهْلَ ٱلْكِبْرِيَاءِ وَٱلْجُودِ
अहलल किब्रियाई वलजूदि
तू ही बुज़ुर्गी और सख़ावत का असली हक़दार है।

يَا مَنْ لا يُكَيَّفُ بِكَيْفٍ
या मन ला युकय्यफ़ु बिकैफ़िन
ऐ वह जिसके बारे में यह कहना मुमकिन नहीं कि “कैसे?”

وَلاَ يُؤَيَّنُ بِأَيْنٍ
व ला युअय्यनु बि-अय्निन
और जिसके बारे में यह पूछना भी मुमकिन नहीं कि “कहाँ?”

يَا مُحْتَجِباً عَنْ كُلِّ عَيْنٍ
या मुहतजिबन अ़न कुल्लि अ़य्निन
ऐ वह जो हर निगाह से ओझल है!

يَا دَيْمُومُ يَا قَيُّومُ وَعَالِمَ كُلِّ مَعْلُومٍ
या दैमूमु या क़य्यूमु व आलिमा कुल्लि मअ़लूमिन
ऐ हमेशा बाक़ी रहने वाले, ऐ ख़ुद क़ायम रहने वाले, और हर जानी हुई चीज़ को जानने वाले!

صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِهِ وَعَلَىٰ عِبَادِكَ ٱلْمُنْتَجَبِينَ
सल्लि अ़ला मुहम्मदिन व आलिही व अ़ला इ़बादिकल मुंतजबीना
मुहम्मद और उनकी आल पर और तेरे चुने हुए बन्दों पर रहमत नाज़िल फ़रमा,

وَبَشَرِكَ ٱلْمُحْتَجِبِينَ
व बशरिकल मुहतजबीना
और तेरे परदे में रखे हुए इंसानों पर,

وَمَلائِكَتِكَ ٱلْمُقَرَّبِينَ
व मलाइकतिकल मुक़र्रबीना
और तेरे क़रीबी फ़रिश्तों पर,

وَٱلْبُهْمِ ٱلصَّافِّينَ ٱلْحَافِّينَ
वल बुह्मिस साफ़्फ़ीना अलहाफ़्फ़ीना
और उन फ़रिश्तों पर जो सफ़ें बाँध कर खड़े रहते हैं और (अर्श के) इर्द-गिर्द रहते हैं,

وَبَارِكْ لَنَا فِي شَهْرِنَا هٰذَا ٱلْمُرَجَّبِ ٱلْمُكَرَّمِ
व बारिक लना फ़ी शह्रिना हाज़ल मुरज्जबिल मुकर्रमि
और हमारे इस मुबारक और मुक़द्दस महीने (रजब) में हमारे लिए बरकत अता फ़रमा,

وَمَا بَعْدَهُ مِنَ ٱلأَشْهُرِ ٱلْحُرُمِ
व मा बअ़दहु मिनल अश्हुरिल हुरुमि
और उसके बाद आने वाले हुरमत वाले महीनों में भी,

وَأَسْبِغْ عَلَيْنَا فِيهِ ٱلنِّعَمَ
व असबिग़ अ़लैना फ़ीहिन्नि-अ़मा
और इन महीनों में हम पर अपनी नेमतें पूरी तरह नाज़िल फ़रमा,

وَأَجْزِلْ لَنَا فِيهِ ٱلْقِسَمَ
व अजज़िल लना फ़ीहिल क़िसमा
और हमारे लिए इसमें हिस्से भरपूर कर दे,

وَأَبْرِرْ لَنَا فِيهِ ٱلْقَسَمَ
व अबरिर लना फ़ीहिल क़समा
और हमारी दुआओं को क़ुबूल फ़रमा,

بِٱسْمِكَ ٱلأَعْظَمِ ٱلأَعْظَمِ ٱلأَجَلِّ ٱلأَكْرَمِ
बिस्मिकल अ़ज़मिल अ़ज़मिल अजल्लिल अकरमि
तेरे उस नाम के वास्ते से जो सबसे बड़ा, सबसे अज़ीम, सबसे बुलंद और सबसे करीम है,

ٱلَّذِي وَضَعْتَهُ عَلَىٰ ٱلنَّهَارِ فَأَضَاءَ
अल्लज़ी वज़अ़तहू अ़लन नहारि फ़अ़ज़ा
जिसे तूने दिन पर रखा तो वह रौशन हो गया,

وَعَلَىٰ ٱللَّيْلِ فَأَظْلَمَ
व अ़ललैलि फ़-अ़ज़लमा
और तूने रात को पैदा किया तो वह अंधेरी हो गई,

وَٱغْفِرْ لَنَا مَا تَعْلَمُ مِنَّا وَمَا لا نَعْلَمُ
वग़्फ़िर लना मा तअ़लमु मिन्ना व मा ला नअ़लमु
और हमारे उन तमाम गुनाहों को बख़्श दे जिन्हें तू जानता है और जिन्हें हम नहीं जानते,

وَٱعْصِمْنَا مِنَ ٱلذُّنُوبِ خَيْرَ ٱلْعِصَمِ
वअ़सिमना मिनज़्ज़ुनूबि ख़ैरल अ़इसमि
और हमें गुनाहों से सबसे बेहतरीन हिफ़ाज़त अता फ़रमा,

وَٱكْفِنَا كَوَافِيَ قَدَرِكَ
वक्फ़िना कवाफ़िया क़दरिका
और हमें तेरी मुक़द्दर की सख़्तियों से बचा ले,

وَٱمْنُنْ عَلَيْنَا بِحُسْنِ نَظَرِكَ
वम्नुन अ़लैना बिहुस्नि नज़रिका
और हम पर अपनी मेहरबान निगाह अता फ़रमा,

وَلاَ تَكِلْنَا إلَىٰ غَيْرِكَ
व ला तकिलना इला ग़ैरिका
और हमें अपने सिवा किसी और के हवाले न कर,

وَلاَ تَمْنَعْنَا مِنْ خَيْرِكَ
व ला तम्नअ़ना मिन ख़ैरिका
और हमें अपनी भलाई से महरूम न कर,

وَبَارِكْ لَنَا فِيمَا كَتَبْتَهُ لَنَا مِنْ أَعْمَارِنَا
व बारिक लना फ़ीमा कतब्तहू लना मिन अ़अ़मारिना
और हमारी उम्र में जो तूने हमारे लिए लिखी है उसमें बरकत अता फ़रमा,

وَأَصْلِحْ لَنَا خَبِيئَةَ أَسْرَارِنَا
व असलिह् लना ख़बीअ़त असरारिना
और हमारे दिलों के छुपे हुए राज़ों को सुधार दे,

وَأَعْطِنَا مِنْكَ ٱلأَمَانَ
व अ़तिना मिंकल अमाना
और हमें अपनी तरफ़ से अमन अता फ़रमा,

وَٱسْتَعْمِلْنَا بِحُسْنِ ٱلإِيـمَانِ
वस्तअ़मिलना बिहुस्निल ईमानि
और हमें अच्छे ईमान के साथ ज़िंदगी गुज़ारने की तौफ़ीक़ दे,

وَبَلِّغْنَا شَهْرَ ٱلصِّيَامِ
व बल्लिग़ना शह्रस्सियामि
और हमें रोज़ों के महीने तक पहुँचा दे,

وَمَا بَعْدَهُ مِنَ ٱلأَيَّامِ وَٱلأَعْوَامِ
व मा बअ़दहु मिनल अय्यामि वल अ़अ़वामि
और उसके बाद आने वाले दिनों और सालों तक भी,

يَا ذَا َٱلْجَلالِ وَٱلإِكْرَامِ
या ज़ल जलालि वल इकराम
ऐ जलाल और इकराम वाले परवरदिगार!


शैख़ अल-तूसी (र.ह.) ने रिवायत की है कि इमाम अल-महदी (अ.स.) की मुहर लगा हुआ एक दस्तावेज़ शैख़ अबू अल-क़ासिम हुसैन इब्न रूह अल-नौबख़्ती (र.ह.)—जो इमाम अल-महदी (अ.स.) के नायब थे—को प्राप्त हुआ, जिसमें रजब के महीने के लिए यह दुआ बयान की गई है:
इस दुआ में हम अल्लाह (स.व.त.) की क़सम देकर, इस महीने में होने वाले दो मुबारक जन्मों के वसीले से दुआ करते हैं—इमाम अल-जवाद (अ.स.) और इमाम अल-हादी (अ.स.)। और हम उससे मग़फ़िरत और माफी चाहते हैं और यह कि वह हमें अच्छा और पसंदीदा अंजाम अता फ़रमाए।



اَللَّهُمَّ إنِّي أَسْأَلُكَ بِٱلْمَوْلُودَيْنِ فِي رَجَبٍ
अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुका बिल-मौलूदैन फ़ी रजब
ऐ अल्लाह! मैं तुझसे रजब में पैदा होने वाले दो मुबारक जन्मों के वसीले से सवाल करता हूँ,

مُحَمَّدِ بْنِ عَلِيٍّ ٱلثَّانِي
मुहम्मद बिन अली अस-सानी
मुहम्मद बिन अली दूसरे,

وَٱبْنِهِ عَلِيٍّ بْنِ مُحَمَّدٍ ٱلْمُنْتَجَبِ
व अब्निही अली बिन मुहम्मद अल-मुन्तजिब
और उनके बेटे अली बिन मुहम्मद, जो अल्लाह के चुने हुए हैं;

وَأَتَقَرَّبُ بِهِمَا إِلَيْكَ خَيْرَ ٱلْقُرَبِ
व अतक़र्रबु बिहिमा इलैका ख़ैरल-क़ुरब
और मैं उन दोनों के वसीले से तेरी बारगाह में क़ुर्बत चाहता हूँ, क्योंकि वही तेरी तरफ़ सबसे बेहतरीन ज़रिया-ए-क़ुर्बत हैं।

يَا مَنْ إِلَيْهِ ٱلْمَعْرُوفُ طُلِبَ
या मन इलैहिल-मआरूफ़ु तुलिब
ऐ वह जिसके पास से भलाई माँगी जाती है,

وَفِيمَا لَدَيْهِ رُغِبَ
व फ़ीमा लदैह़ी रुग़िब
और जिसकी नेमतों की तमन्ना की जाती है!

أَسْأَلُكَ سُؤَالَ مُقْتَرِفٍ مُذْنِبٍ
असअलुका सुआला मुक़्तरिफ़िन मुज़्निब
मैं तुझसे उस गुनाहगार की तरह सवाल करता हूँ जिसने गुनाह किए हों,

قَدْ أَوْبَقَتْهُ ذُنُوبُهُ
क़द औबक़त-हु ज़ुनूबुहू
जो अपने गुनाहों की ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ है

وَأَوْثَقَتْهُ عُيُوبُهُ
व औसक़त-हु उयूबुहू
और जिसकी कमज़ोरियों ने उसे बाँध रखा है;

فَطَالَ عَلَىٰ ٱلْخَطَايَا دُؤُوبُهُ
फ़ताला अलल-ख़ताया दुअूबुहू
इसलिए वह लम्बे अरसे तक गुनाहों में डूबा रहा,

وَمِنَ ٱلرَّزَايَا خُطُوبُهُ
व मिनर-रज़ाया ख़ुतूबुहू
और मुसीबतें उस पर टूट पड़ीं।

يَسْأَلُكَ ٱلتَّوْبَةَ
यसअलुका अत-तौबा
अब वह तुझसे तौबा की क़ुबूलियत चाहता है,

وَحُسْنَ ٱلأَوْبَةِ
व हुस्नल-अौबा
और तेरी तरफ़ से अच्छा पलटना,

وَٱلنُّزُوعَ عَنِ ٱلْحَوْبَةِ
वन-नुज़ूअ अनिल-हौबा
और अज़ाब से छुटकारा,

وَمِنَ ٱلنَّارِ فَكَاكَ رَقَبَتِهِ
व मिनन-नारि फ़काका रक़बतिही
और जहन्नम की आग से रिहाई,

وَٱلْعَفْوَ عَمَّا فِي رِبْقَتِهِ
वल-अफ़्वा अम्मा फी रिब्क़तिही
और उन गुनाहों से दरगुज़र जो उसके गले में पड़े हैं।

فَأَنْتَ مَوْلاَيَ أَعْظَمُ أَمَلِهِ وَثِقَتِهِ
फ़अन्ता मौलाया अअज़मु अमलिही व स़िक़तिही
तो ऐ मेरे मौला! वही उसकी सबसे बड़ी उम्मीद और भरोसा है।

اَللَّهُمَّ وَأَسْأَلُكَ بِمَسَائِلِكَ ٱلشَّرِيفَةِ
अल्लाहुम्मा व असअलुका बिमसाइलिकश-शरीफ़ा
ऐ अल्लाह! मैं तुझसे तेरे शरीफ़ ज़रियों के वसीले से सवाल करता हूँ

وَوَسَائِلِكَ ٱلْمُنِيفَةِ
व वसाइलिकल-मुनीफ़ा
और तेरे बुलंद रास्तों के वसीले से

أَنْ تَتَغَمَّدَنِي فِي هٰذَا ٱلشَّهْرِ بِرَحْمَةٍ مِنْكَ وَاسِعَةٍ
अन ततग़म्मदनी फी हाज़ाश-शहरि बिरहमतिन मिंका वासिअतिन
कि तू इस महीने में मुझे अपनी वसीअ रहमत से ढाँप ले,

وَنِعْمَةٍ وَازِعَةٍ
व नि‘मतिन वासि‘अतिन
बेहद और वसीअ नेमतें,

وَنَفْسٍ بِمَا رَزَقْتَهَا قَانِعَةٍ
व नफ़्सिन बिमा रज़क़्तहा क़ानि‘अतिन
और ऐसा दिल जो उस रिज़्क़ पर राज़ी रहे जो तूने अता फ़रमाया है,

إِلَىٰ نُزُولِ ٱلْحَافِرَةِ
इला नुज़ूलिल-हाफ़िरह
यहाँ तक कि मुझे मेरी आख़िरी क़ब्र में उतार दिया जाए,

وَمَحَلِّ ٱلآخِرَةِ
व महल्लिल-आख़िरह
जो आख़िरत का ठिकाना है,

وَمَا هِيَ إِلَيْهِ صَائِرَةٌ
व मा हिया इलैहि स़ाइरतुन
और वही अन्तिम अंजाम है।


वीडियो II सभी दुआएँ





नीचे A से E तक अदा की जाने वाली विभिन्न नमाज़ें मौजूद हैं।
साथ ही ख़ास तारीख़ों की रात की नमाज़
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A. हर रात यह मुस्तहब है कि इस नमाज़ की दो रकअत अदा की जाए, जिसमें हर रकअत में एक बार सूरह अल-फ़ातिहा, तीन बार सूरह अल-काफ़िरून और एक बार सूरह अल-तौहीद पढ़ी जाए।
नमाज़ मुकम्मल करने के बाद, हाथ आसमान की तरफ़ उठाकर यह दुआ पढ़ें:
لاَ إِلٰهَ إِلاَّ ٱللَّهُ
ला इलाहा इल्लल्लाहु
अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं।

وَحْدَهُ لاَ شَرِيكَ لَهُ
वह्दहू ला शरीका लहू
वह अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं।

لَهُ ٱلْمُلْكُ وَلَهُ ٱلْحَمْدُ
लहुल मुल्कु व लहुल हम्दु
उसी की बादशाहत है और उसी के लिए तमाम हम्द है।

يُحْيِي وَيُمِيتُ
युह्यी व युमीतु
वही ज़िंदगी देता है और वही मौत देता है।

وَهُوَ حَيٌّ لاَ يَمُوتُ
व हुआ हय्युन ला यमूतु
और वही हमेशा ज़िंदा है, उसे कभी मौत नहीं।

بِيَدِهِ ٱلْخَيْرُ
बि यदिहिल ख़ैरु
हर भलाई उसी के हाथ में है।

وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
व हुआ अला कुल्लि शयइ़न क़दीरुं
और वह हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।

وَإِلَيْهِ ٱلْمَصِيرُ
व इलैहिल मसीरु
और उसी की तरफ़ सबको लौटना है।

وَلاَ حَوْلَ وَلاَ قُوَّةَ إِلاَّ بِٱللَّهِ ٱلْعَلِيِّ ٱلْعَظِيمِ
व ला हौला व ला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलीय्यिल अज़ीम
अल्लाह बुलंद व अज़ीम के सिवा न कोई ताक़त है न कोई क़ुव्वत।

اَللَّهُمَّ صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ ٱلنَّبِيِّ ٱلْأُمِّيِّ وَآلِهِ
अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिन नबिय्यिल उम्मिय्यि व आलिही
ऐ अल्लाह! हज़रत मुहम्मद ﷺ जो उम्मी नबी हैं और उनकी आल पर रहमत नाज़िल फ़रमा।

यह भी मुस्तहब है कि इस दुआ के आख़िरी जुमले को पढ़ते वक़्त अपने हाथ को चेहरे पर फेर लिया जाए।
हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ (उन पर और उनके अहले-बैत पर सलाम व दरूद हो) से रिवायत है कि जो शख़्स यह नमाज़ अदा करे और यह दुआ पढ़े, अल्लाह तआला उसकी हाजतें पूरी फ़रमाएगा और उसे साठ हज और उमरह का सवाब अता करेगा।
रजब में दूसरी नमाज़ें
B.)हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से यह भी मर्वी है कि जो लोग रजब की किसी एक रात में दस रकअत नमाज़ अदा करें और हर रकअत में एक बार सूरह अल-फ़ातिहा और तीन बार सूरह अल-तौहीद पढ़ें, अल्लाह तआला उनके तमाम गुनाह माफ़ फ़रमा देगा।


C)हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ ने फ़रमाया: “जो शख़्स माहे रजब की किसी एक रात में दो रकअत नमाज़ में सूरह इख़्लास 100 मर्तबा (50 × 2) पढ़े, उसका सवाब ऐसा है जैसे उसने सौ साल के रोज़े रखे हों..... (हवाला: मफ़ातीह, आमाल-ए-रजब, पृष्ठ 18)।


D)हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ ने फ़रमाया: “अल्लाह तआला उस शख़्स के तमाम गुनाह माफ़ फ़रमा देगा जो माहे रजब की किसी एक रात में दस रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में;
एक बार सूरह अल-फ़ातिहा + एक बार सूरह काफ़िरून + तीन बार सूरह अल-तौहीद पढ़े।” [हवाला: मफ़ातीह, आमाल-ए-रजब, पृष्ठ 19]।

तारीख़ के मुताबिक़ रजब की रातों की नमाज़ें – अलग पेज
E.माहे रजब में तारीख़ के मुताबिक़ नमाज़ें, जैसा कि इक़बाल-उल-आमाल में बयान हुआ है

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रजब की दूसरी रात – हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ (उन पर और उनके अहले-बैत पर सलाम व दरूद हो) से रिवायत है: जो शख़्स रजब की दूसरी रात 10 (5×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा और एक बार सूरह काफ़िरून पढ़े, अल्लाह तआला उसके तमाम गुनाह, छोटे हों या बड़े, माफ़ फ़रमा देगा और अगले साल तक उसका नाम मुसल्लियों में लिख देगा।
रजब की तीसरी रात – हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की तीसरी रात 10 (5×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा और पाँच बार सूरह नस्र पढ़े, अल्लाह उसके लिए जन्नत में एक महल बनाएगा जिसकी लंबाई और चौड़ाई दुनिया से सात गुना होगी।
रजब का तीसरा दिन – हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब के तीसरे दिन 4 (2×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह बक़रा (आयत 163–165) पढ़े, अल्लाह उसे ऐसा अज्र अता करेगा जिसे बयान नहीं किया जा सकता।
रजब की चौथी रात – हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की चौथी रात 100 (50×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर पहली रकअत में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह फ़लक़ पढ़े, और हर दूसरी रकअत में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह नास पढ़े, तो हर आसमान से फ़रिश्ते नाज़िल होंगे जो क़ियामत तक उसके सवाब को लिखते रहेंगे। क़ियामत के दिन उसका चेहरा चाँद की तरह रौशन होगा, उसका आमालनामा दाएँ हाथ में दिया जाएगा और उससे आसान हिसाब लिया जाएगा।
रजब की पाँचवीं रात – हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की पाँचवीं रात 6 (3×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में सूरह फ़ातिहा के बाद 25 बार सूरह इख़्लास पढ़े, अल्लाह उसे 40 नबियों, 40 सिद्दीक़ों और 40 शहीदों का सवाब अता करेगा, और उसे पुल-ए-सिरात से बिजली की तरह गुज़ार देगा, जैसे वह नूर के घोड़े पर सवार हो।
रजब की छठी रात – हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की छठी रात 2 रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा और सात बार आयतुल कुर्सी पढ़े, तो आसमान से एक पुकारने वाला पुकारेगा: “ऐ अल्लाह के बंदे! तू सच में अल्लाह का दोस्त है। इस नमाज़ में पढ़े गए हर हरफ़ के बदले मुसलमानों की शफ़ाअत मिलेगी, सत्तर हज़ार नेकियाँ दी जाएँगी, और अल्लाह के यहाँ हर नेकी इस दुनिया के पहाड़ों से बड़ी होगी।”
रजब की सातवीं रात हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ फ़रमाते हैं कि जो शख़्स रजब की सातवीं रात 4 रकअत नमाज़ अदा करे, इस तरह कि हर रकअत में सूरह अल-हम्द के बाद तीन बार सूरह तौहीद, एक बार सूरह फ़लक़ और एक बार सूरह नास पढ़े, और नमाज़ के बाद सलवात पढ़े तथा दस बार तस्बीहाते-अरबा कहे। अल्लाह उसे अर्श के साए में जगह देगा, रमज़ान के रोज़ेदार के बराबर सवाब अता करेगा, और जब तक वह नमाज़ मुकम्मल करेगा फ़रिश्ते उसके लिए मग़फ़िरत की दुआ करते रहेंगे। अल्लाह मौत की सख़्ती को उस पर आसान कर देगा, क़ब्र की तंगी से बचाएगा, वह जन्नत में अपनी जगह देखे बिना दुनिया से नहीं जाएगा और क़ियामत की सख़्तियों से महफ़ूज़ रहेगा।
रजब की आठवीं रात – हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की आठवीं रात 20 (10×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह तौहीद, सूरह काफ़िरून और सूरह फ़लक़ तीन-तीन बार पढ़े, अल्लाह उसे शुक्रगुज़ारों और सब्र करने वालों का सवाब अता करेगा, उसका नाम सिद्दीक़ों में दर्ज करेगा, और हर हरफ़ के बदले तमाम सिद्दीक़ों और शहीदों का सवाब देगा। ऐसा होगा मानो उसने रमज़ान में पूरा क़ुरआन पढ़ा हो। क़ब्र से निकलते वक़्त सत्तर फ़रिश्ते उसका इस्तक़बाल करेंगे, जन्नत की खुशख़बरी देंगे और उसे जन्नत तक ले जाएँगे।
रजब की नौवीं रात – हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की नौवीं रात 2 रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा और पाँच बार सूरह तकासुर पढ़े, अल्लाह उसके गुनाह माफ़ फ़रमा देगा, उसे सौ हज और उमरह का सवाब अता करेगा, उसके लिए रहमत के दस लाख दरवाज़े खोले जाएँगे, और उठने से पहले ही उसे जहन्नम से महफ़ूज़ कर दिया जाएगा। अगर वह अस्सी दिनों के भीतर वफ़ात पाए, तो उसे शहीदों में शुमार किया जाएगा।
रजब की दसवीं रात – हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की दसवीं रात 12 (6×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा और तीन बार सूरह इख़्लास पढ़े, अल्लाह उसके लिए लाल याक़ूत के सुतून पर एक महल बनाएगा। उस सुतून में सात सौ कमरे होंगे, और हर कमरा इस दुनिया से बड़ा होगा। उस महल के तमाम कमरे सोने, चाँदी, याक़ूत और ज़मर्रुद से बने होंगे। उस महल में उतने घर होंगे जितने आसमान में सितारे हैं, और उनमें ऐसी नेमतें होंगी जिन्हें इंसान बयान नहीं कर सकता।
रजब की ग्यारहवीं रात - हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ (उन पर और उनके अहले-बैत पर सलाम व दरूद हो) से रिवायत है: जो शख़्स रजब की ग्यारहवीं रात 12 (6×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा और बारह बार आयतुल कुर्सी पढ़े, अल्लाह उसे ऐसा सवाब अता करेगा मानो उसने तौरात, इंजील, ज़बूर, फ़ुरक़ान (क़ुरआन) और वे तमाम किताबें पढ़ ली हों जो अल्लाह तआला ने अपने पैग़म्बरों पर नाज़िल कीं। फिर अर्श से एक पुकारने वाला पुकारेगा: अपने आमाल नए सिरे से शुरू करो, बेशक अल्लाह ने तुम्हें माफ़ कर दिया है।
रजब की बारहवीं रात - हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की बारहवीं रात 2 रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा और दस बार सूरह बक़रा (आयत 285–286) पढ़े, अल्लाह उसे नेकी का हुक्म देने और बुराई से रोकने वालों का सवाब अता करेगा, और हज़रत इस्माईल की नस्ल में से सत्तर ग़ुलाम आज़ाद करने का अज्र देगा, और उसे सत्तर रहमतें अता करेगा।
रजब की तेरहवीं रात - हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की तेरहवीं रात 10 (5×2) रकअत नमाज़ अदा करे, पहली रकअत में सूरह फ़ातिहा और सूरह आदियात एक-एक बार पढ़े, और बाक़ी नौ रकअतों में सूरह फ़ातिहा और सूरह तकासुर एक-एक बार पढ़े,
अल्लाह उसके गुनाह माफ़ फ़रमा देगा चाहे उसके वालिदैन उससे नाराज़ ही क्यों न रहे हों। न मुनकर नकीर उसे डराएँगे, वह पुल-ए-सिरात से बिजली की तरह गुज़रेगा, उसका आमालनामा दाएँ हाथ में दिया जाएगा, उसके नेक आमाल भारी कर दिए जाएँगे और उसे जन्नत में एक हज़ार शहर अता किए जाएँगे।
रजब की चौदहवीं रात - हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की चौदहवीं रात 30 (15×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में सूरह फ़ातिहा, सूरह इख़्लास और सूरह क़हफ़ की आयत 110 एक-एक बार पढ़े,
क़सम है उस ज़ात की जिसके हाथ में मेरी जान है, वह नमाज़ से इस हाल में फ़ारिग़ होगा कि पूरी तरह पाक हो चुका होगा, चाहे उसके गुनाह आसमान के सितारों से भी ज़्यादा क्यों न हों, और ऐसा होगा मानो उसने अल्लाह की नाज़िल की हुई पूरी किताब की तिलावत कर ली हो।
रजब की पंद्रहवीं रात
रजब की सोलहवीं रात - हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की सोलहवीं रात 30 (15×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में सूरह फ़ातिहा और सूरह इख़्लास दस-दस बार पढ़े,
अल्लाह उसे नमाज़ मुकम्मल होने से पहले ही सत्तर शहीदों का सवाब अता करेगा, क़ियामत के दिन उसका नूर मक्का और मदीना के दरमियान की दूरी की तरह चमकेगा, और अल्लाह उसे आग से निजात, निफ़ाक़ से हिफ़ाज़त और क़ब्र के अज़ाब से आज़ादी अता करेगा।
रजब की सत्रहवीं रात - हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की सत्रहवीं रात 30 (15×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में सूरह फ़ातिहा और सूरह इख़्लास दस-दस बार पढ़े,
अल्लाह उसे नमाज़ मुकम्मल होने से पहले ही सत्तर शहीदों का सवाब अता करेगा।
रजब की अठारहवीं रात - हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की अठारहवीं रात 2 रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा तथा दस-दस बार सूरह इख़्लास, सूरह फ़लक़ और सूरह नास पढ़े,
नमाज़ पूरी होने पर अल्लाह फ़रिश्तों से फ़रमाएगा: मैंने इसके गुनाह माफ़ कर दिए, चाहे इसके गुनाह धोख़ेबाज़ ताजिर से भी ज़्यादा हों। अल्लाह उसके और आग के दरमियान छह खंदक़ बना देगा, और हर खंदक़ की दूरी आसमान और ज़मीन के बराबर होगी।
रजब की उन्नीसवीं रात - हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की उन्नीसवीं रात 4 (2×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा, पंद्रह बार आयतुल कुर्सी और पंद्रह बार ला इलाहा इल्लल्लाह पढ़े,
अल्लाह उसे वही अज्र अता करेगा जो उसने हज़रत मूसा को अता किया। हर हरफ़ के बदले उसे एक शहीद का सवाब मिलेगा। अल्लाह उसे फ़रिश्तों के साथ उठाएगा जो उसे तीन खुशख़बरियाँ देंगे: न क़ियामत की मंज़िल पर परेशानी होगी, न हिसाब लिया जाएगा, और वह बिना हिसाब के जन्नत में दाख़िल होगा। और जब वह अल्लाह के सामने खड़ा होगा तो अल्लाह फ़रमाएगा: ऐ मेरे बंदे! न डर और न ग़म कर, मैं तुझसे राज़ी हूँ और जन्नत तेरे लिए हलाल है।
रजब की बीसवीं रात - हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की बीसवीं रात 2 रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा और पाँच बार सूरह क़द्र पढ़े,
अल्लाह उसे हज़रत इब्राहीम, मूसा, यह्या और ईसा के बराबर सवाब अता करेगा। ऐसी नमाज़ पढ़ने वाले को जिन्न और इंसान नुक़सान नहीं पहुँचा सकेंगे, और अल्लाह उस पर रहमत की नज़र फ़रमाएगा।
रजब की इक्कीसवीं रात - हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की इक्कीसवीं रात 6 (3×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा, दस बार सूरह कौसर और दस बार सूरह इख़्लास पढ़े,
अल्लाह फ़रिश्तों को हुक्म देगा कि एक साल तक उसके किसी भी बुरे आमाल को न लिखा जाए और सिर्फ़ नेकियाँ लिखी जाएँ। क़सम है उस ज़ात की जिसने मुझे हक़ के साथ नबूवत दी, जो शख़्स मुझसे और अल्लाह से मुहब्बत रखता है और यह नमाज़ पढ़ता है — चाहे बैठकर ही क्यों न पढ़े — अल्लाह फ़रिश्तों के सामने उस पर फ़ख़्र करेगा और फ़रमाएगा: बेशक मैंने इसे माफ़ कर दिया।
रजब की बाईसवीं रात - हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: 8 (4×2) रकअत नमाज़ अदा करो, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा और सात बार सूरह काफ़िरून पढ़ो। नमाज़ के बाद दस बार नबी और उनकी आल पर दरूद (सलवात) भेजो और दस बार इस्तिग़फ़ार (अस्तग़फ़िरुल्लाह रब्बी व अतूबु इलैह) पढ़ो।
इसका सवाब यह है कि इंसान दुनिया से रुख़्सत नहीं होगा जब तक जन्नत में अपनी जगह न देख ले। वह मुसलमान की हालत में वफ़ात पाएगा और सत्तर नबियों का सवाब हासिल करेगा।
‘मनाज़िर-उल-आख़िरा’ (शैख़ अब्बास क़ुम्मी) से 22 रजब की नमाज़ 8 रकअत (2 रकअत × 4) नमाज़ पढ़ें, हर रकअत में सूरह अल-हम्द के बाद सात बार सूरह तौहीद पढ़ें। नमाज़ मुकम्मल करने के बाद दस बार सलवात और दस बार अस्तग़फ़िरुल्लाह रब्बी व अतूबु इलैह पढ़ें। यह अमल मौत के वक़्त फ़ायदेमंद बताया गया है।
रजब की तेईसवीं रात - हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की तेईसवीं रात 2 रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा और सूरह दुहा (सूरह 93) पाँच बार पढ़े,
अल्लाह उसे हर हरफ़ के बदले जन्नत में एक दर्जा देगा, और हर काफ़िर मर्द और औरत के बदले उसके लिए जन्नत में दर्जा बढ़ाएगा, और उसे सत्तर हज का सवाब, एक हज़ार जनाज़ों में शरीक होने का सवाब, एक हज़ार मरीज़ों की अयादत का सवाब और एक हज़ार मुसलमानों की ज़रूरतें पूरी करने का सवाब अता करेगा।
रजब की चौबीसवीं रात - हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की चौबीसवीं रात 40 (20×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा, सूरह बक़रा (आयत 285 और 286) एक बार और सूरह इख़्लास एक बार पढ़े,
अल्लाह उसके लिए एक हज़ार नेकियाँ लिखेगा, एक हज़ार गुनाह मिटाएगा और एक हज़ार दर्जे बुलंद करेगा। वह आसमान से एक हज़ार फ़रिश्ते नाज़िल करेगा जो हाथ उठाकर उसके लिए रहमत की दुआ करेंगे। अल्लाह उसे दुनिया और आख़िरत में सेहत अता करेगा, और ऐसा होगा मानो उसने शबे-क़द्र को पा लिया हो।
रजब की पच्चीसवीं रात - हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की पच्चीसवीं रात मग़रिब और इशा के दरमियान 20 (10×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा, सूरह बक़रा (आयत 285 और 286) एक बार और सूरह इख़्लास एक बार पढ़े,
अल्लाह उसकी जान, उसकी बीवी, उसका दीन, उसका माल और उसकी आख़िरत की हिफ़ाज़त फ़रमाएगा, और वह अपनी जगह से उठने से पहले ही बख़्श दिया जाएगा।
रजब की छब्बीसवीं रात - हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की छब्बीसवीं रात 12 (6×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा और चालीस बार सूरह इख़्लास पढ़े (कुछ रिवायतों में चार बार का ज़िक्र है),
फ़रिश्ते उसे गले लगा लेंगे, और जिसे फ़रिश्ते गले लगा लें वह पुल, हिसाब और मीज़ान पर रोके जाने से महफ़ूज़ रहेगा। अल्लाह सत्तर फ़रिश्तों को मुक़र्रर करेगा जो उसके लिए इस्तिग़फ़ार करेंगे, उसके लिए सवाब लिखेंगे और अल्लाह की अज़मत बयान करेंगे और सुबह तक कहते रहेंगे: “ऐ हमारे अल्लाह! इस इबादतगुज़ार बंदे को माफ़ फ़रमा।”
रजब की सत्ताईसवीं रात
रजब की अट्ठाईसवीं रात - हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की अट्ठाईसवीं रात 12 (6×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा तथा दस-दस बार सूरह आला और सूरह क़द्र पढ़े, और नमाज़ मुकम्मल करने के बाद सौ-सौ बार सलवात और इस्तिग़फ़ार करे,
अल्लाह तआला उसके लिए फ़रिश्तों की इबादत का सवाब लिख देगा।
रजब की उनतीसवीं रात - हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की उनतीसवीं रात 12 (6×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा तथा दस-दस बार सूरह आला और सूरह क़द्र पढ़े, और नमाज़ मुकम्मल करने के बाद सौ-सौ बार सलवात और इस्तिग़फ़ार करे,
अल्लाह तआला उसके लिए फ़रिश्तों की इबादत का सवाब लिख देगा।
रजब की तीसवीं रात - हज़रत रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ से रिवायत है: जो शख़्स रजब की तीसवीं रात 10 (5×2) रकअत नमाज़ अदा करे, और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा और दस बार सूरह इख़्लास पढ़े,
अल्लाह उसे जन्नत में सात शहर अता करेगा, क़ब्र से उसका चेहरा चौदहवीं के चाँद की तरह चमकता हुआ निकाला जाएगा, वह पुल-ए-सिरात से तेज़ बिजली की तरह गुज़रेगा और आग से महफ़ूज़ रहेगा।




रजब में जुमा की नमाज़ – इक़बाल-ए-आमाल
जो शख़्स माहे रजब के जुमा के दिन सूरह तौहीद 100 बार पढ़े, क़ियामत के दिन उसे ऐसा नूर नसीब होगा जो उसे जन्नत की तरफ़ खींच ले जाएगा।
अब्दुल्लाह इब्न अब्बास से रिवायत है, अल्लाह के रसूल ﷺ (सल्लल्लाहु अलैहि व आलेहि) से: “माहे रजब के किसी जुमा के दिन ज़ुहर और असर के दरमियान चार रकअत नमाज़ पढ़ो,
और हर रकअत में एक बार सूरह फ़ातिहा, सात बार आयतुल कुर्सी, पाँच बार सूरह इख़्लास पढ़ो, और
फिर यह दुआ दस बार कहो,
اسْتَغْفِرُ ٱللَّهَ وَاسْالُهُ ٱلتَّوْبَةَ
मैं अल्लाह से मग़फ़िरत माँगता हूँ और उससे तौबा क़ुबूल होने की दुआ करता हूँ
मैं अल्लाह से अपने गुनाहों की माफ़ी माँगता हूँ और उससे अपनी तौबा क़ुबूल करने की दुआ करता हूँ।


जुमा की दूसरी दुआएँ

रजब का आख़िरी जुमा
माहे रजब के आख़िरी जुमा की एक ख़ास दुआ, उम्र में बढ़ोतरी के लिए
आयतुल्लाह मोहम्मद बाक़िर फ़िराशक़ी ने अपनी किताब आमाल में इस दुआ का ज़िक्र किया है
يَا أَجَلَّ مِنْ كُلِّ جَلِيْل، يَا أكْرَمَ مِنْ كُلِّ كَرِيْم،
या अजल्‍ल मिन कुल्‍लि जलील, या अकरम मिन कुल्‍लि करीम,
ऐ वह जो हर बुज़ुर्ग से ज़्यादा बुलंद है, ऐ वह जो हर करीम से ज़्यादा करम करने वाला है,

وَيَا أَعَزَّ مِنْ كُلِّ عَزِيْز،
व या अअज़्‍ज़ मिन कुल्‍लि अज़ीज़,
और ऐ वह जो हर अज़ीज़ से ज़्यादा ताक़तवर है,

أغِثنِى يَا غيَات الْمُستَغِيثِينَ بِفَضْلِكَ وَ جُوْدِكَ وَ كَرَمِكَ
अग़िस्नी या ग़यासुल मुस्तग़ीसीन बि फ़ज़्लिका व जूदिका व करमिका,
हमारी फ़रियाद को क़ुबूल फ़रमा, ऐ मदद चाहने वालों की फ़रियाद सुनने वाले, अपने फ़ज़्ल, अपने जूद और अपने करम के साथ

وَ مُدًّ عُمرنَا وَهَب لنامِن لَدُنكَ عَمراً
व मुद्द उमरना व हब् लना मिन लदुन्‍का उमरन,
और हमारी उम्र को बढ़ा दे, और अपनी तरफ़ से हमें उम्र अता फ़रमा

بِالعافيَةِ يَا ذُالْجَلَالِ وَ الْاِكْرَام
बिल आफ़ियते या ज़ुल जलालि वल इकराम,
आफ़ियत के साथ, ऐ जलाल और इकराम वाले

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माहे शाबान का इंडेक्स