4.शैख़ तूस़ी ने यह भी ज़िक्र किया है कि रजब के महीने में यह दुआ रोज़ाना पढ़ी जाती है:
यह दुआ तौहीद (अल्लाह की यकताई) से संबंधित मफ़ाहीम पर मुश्तमिल है।
इसमें अल्लाह (सुब्हानहू व तआला) को ऐसे अंदाज़ में बयान किया गया है जिसे बयान करना हमारे लिए मुमकिन नहीं।
اَللَّهُمَّ يَا ذَاَ ٱلْمِنَنِ ٱلسَّابِغَةِ
अल्लाहुम्मा या ज़ल मिननिस्साबिग़ह
ऐ अल्लाह! ऐ तमाम मुकम्मल नेमतों के मालिक,
वल आलाइ अल-वाज़िआ
और बड़ी बड़ी अता और इनायतों के मालिक,
وَٱلرَّحْمَةِ ٱلْوَاسِعَةِ
वल रहमतिल-वासिआ
और वसीअ रहमत वाले,
وَٱلْقُدْرَةِ ٱلْجَامِعَةِ
वल क़ुदरतिल-जामिआ
और हर चीज़ को घेर लेने वाली क़ुदरत वाले,
वल निअमिल-जसीमा
और अज़ीम नेमतों वाले,
وَٱلْمَوَاهِبِ ٱلْعَظِيمَةِ
वल मवाहिबिल-अज़ीमा
और बड़े बड़े तोहफ़ों वाले,
وَٱلأَيَادِي ٱلْجَمِيلَةِ
वल अयादिल-जमीला
और खूबसूरत एहसानों वाले,
وَٱلْعَطَايَا ٱلْجَزِيلَةِ
वल अतायाल-जज़ीला
और कसरत से अता फ़रमाने वाले!
يَا مَنْ لا يُنْعَتُ بِتَمْثِيلٍ
या मन ला युनअतु बि-तम्थील
ऐ वह जो किसी मिसाल से बयान नहीं किया जा सकता,
وَلاَ يُمَثَّلُ بِنَظِيرٍ
व ला युमथ्थलु बि-नज़ीर
और न ही किसी की मिस्ल ठहराया जा सकता है,
व ला युग़्लबु बि-ज़हीर
और न ही किसी मददगार के सहारे उस पर ग़लबा पाया जा सकता है।
या मन खलक़ा फ़रज़क़ा
ऐ वह जिसने पैदा किया फिर रिज़्क़ अता किया,
व अल्हमा फ़अंतक़ा
और इल्हाम किया फिर बोलने की तौफ़ीक़ दी,
वब्तदअ फ़शरअ
और इजाद किया फिर उसे जारी किया,
व अला फ़रताफ़अ
और बुलंद हुआ फिर और भी ऊँचा हो गया,
व क़द्दरा फ़अह्सन
और अंदाज़ा मुक़र्रर किया फिर उसे बेहतरीन बनाया,
व सव्वरा फ़अत्क़न
और सूरत बनाई फिर उसे मुकम्मल/बेहतरीन किया,
वहतज्जा फ़अब्लग़
और दलील को कायम किया फिर उसे पूरी तरह पहुँचा दिया,
व अनअमा फ़अस्बग़
और नेमत अता की फिर उसे भरपूर कर दिया,
व अअता फ़अजज़ला
और भरपूर बदला अता फ़रमाया,
व मनहा फ़अफ़ज़ला
और बड़े करम के साथ नेमतें अता कीं!
يَا مَنْ سَمَا فِي ٱلْعِزِّ
या मन समा फ़िल-इज़्ज़
ऐ वह जो इज़्ज़त और क़ुदरत में बहुत बुलंद है
فَفَاتَ نَوَاظِرَ ٱلأَبْصَارِ
फ़फ़ाता नवाज़िरल-अबसार
यहाँ तक कि निगाहें उसे पा नहीं सकतीं,
व दना फ़िल-लुत्फ़
और लुत्फ़ व करम में इतना क़रीब है
فَجَازَ هَوَاجِسَ ٱلأَفْكَارِ
फ़जाज़ा हवाजिसल-अफ़कार
कि ख़यालों की हर हद से आगे निकल जाता है!
يَا مَنْ تَوَحَّدَ بِٱلْمُلْكِ
या मन तवह्हदा बिल-मुल्क
ऐ वह जो अपनी बादशाही में यकता है
فَلاَ نِدَّ لَهُ فِي مَلَكُوتِ سُلْطَانِهِ
फ़ला निद्ध लहू फ़ी मलाकूतِ सुल्तानिही
कि उसकी सल्तनत में उसका कोई शरीक नहीं,
وَتَفَرَّدَ بِٱلآلاَءِ وَٱلْكِبْرِيَاءِ
व तफ़र्रदा बिल-आलाई वल-किब्रिया
और नेमतों व अज़मत में वह बिल्कुल बेमिसाल है,
فَلاَ ضِدَّ لَهُ فِي جَبَرُوتِ شَأْنِهِ
फ़ला ज़िद्ध लहू फ़ी जबरूतِ शानिही
कि उसकी क़ुदरत के सामने कोई मुक़ाबिल नहीं!
يَا مَنْ حَارَتْ فِي كِبْرِيَاءِ هَيْبَتِهِ دَقَائِقُ لَطَائِفِ ٱلأَوْهَامِ
या मन हारत फ़ी किब्रिया-ए हैबतिही दक़ाइक़ु लताइफ़िल-अवहाम
ऐ वह जिसकी हैबत और अज़मत में वहम की बारीकियाँ भी हैरान रह जाती हैं,
وَٱنْحَسَرَتْ دُونَ إِدْرَاكِ عَظَمَتِهِ خَطَائِفُ أَبْصَارِ ٱلأَنَامِ
वन्हसरत दूना इद्राक़ि अज़मतिही ख़ताइफ़ु अबसारिल-अनाम
और उसकी अज़मत को पाने से पहले ही मख़लूक़ की निगाहें थक जाती हैं!
يَا مَنْ عَنَتِ ٱلْوُجُوهُ لِهَيْبَتِهِ
या मन अनतिल-वुजूहु लिहैबतिही
ऐ वह जिसके रौब व हैबत के सामने सारे चेहरे झुक जाते हैं,
وَخَضَعَتِ ٱلرِّقَابُ لِعَظَمَتِهِ
व ख़ज़अतिर-रिक़ाबु लिअज़मतिही
और जिसकी अज़मत के आगे सारी गर्दनें झुक जाती हैं,
وَوَجِلَتِ ٱلْقُلُوبُ مِنْ خِيفَتِهِ
व वजिलतिल-क़ुलूबु मिन ख़ीफ़तिही
और जिसके ख़ौफ़ से दिल काँप उठते हैं!
أَسْأَلُكَ بِهٰذِهِ ٱلْمِدْحَةِ ٱلَّتِي لا تَنْبَغِي إِلاَّ لَكَ
असअलुका बिहाज़िहिल-मिद्हतिल्लती ला तनबग़ी इल्ला लका
मैं तुझसे इस हम्द व सना के वसीले से सवाल करता हूँ जो तेरे सिवा किसी के लिए ज़ेबा नहीं,
وَبِمَا وَأَيْتَ بِهِ عَلَىٰ نَفْسِكَ لِدَاعِيكَ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ
व बिमा वअयता बिही अला नफ़्सिका लिदाइका मिनल-मोमिनीन
और उस वादे के वसीले से जो तूने अपने ऊपर मोमिनों के लिए, जो तुझे पुकारते हैं, लाज़िम कर लिया है,
وَبِمَا ضَمِنْتَ ٱلإِجَابَةَ فِيهِ عَلَىٰ نَفْسِكَ لِلدَّاعِينَ
व बिमा ज़मिन्तल-इजाबता फ़ीही अला नफ़्सिका लिद्दाइीन
और उस ज़िम्मेदारी के वसीले से जो तूने दुआ करने वालों की दुआ क़बूल करने के लिए अपने ऊपर ली है।
يَا أَسْمَعَ ٱلسَّامِعِينَ
या असमअस-सामिईन
ऐ सबसे ज़्यादा सुनने वाले!
व अबसरन-नाज़िरीन
और सबसे ज़्यादा देखने वाले!
व असरअल-हासिबीन
और सबसे तेज़ हिसाब लेने वाले!
يَا ذَاَ ٱلْقُوَّةِ ٱلْمَتِينَ
या ज़ल-क़ुव्वतिल-मतीन
ऐ क़ुव्वत और मज़बूती वाले!
صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ خَاتَمِ ٱلنَّبِيِّينَ وَعَلَىٰ أَهْلِ بَيْتِهِ
सल्लि अला मुहम्मदिन ख़ातमिन-नबिय्यीना व अला अहले बैतिही
मुहम्मद पर, जो नबियों के ख़ातिम हैं, और उनकी आल पर दरूद भेज,
وَٱقْسِمْ لِي فِي شَهْرِنَا هٰذَا خَيْرَ مَا قَسَمْتَ
वक़्सिम ली फ़ी शहरिना हाज़ा ख़ैरा मा क़सम्ता
और हमारे इस महीने में मेरे लिए वही बेहतरीन हिस्सा मुक़र्रर फ़रमा जो तूने किसी के लिए मुक़र्रर किया है,
وَٱحْتِمْ لِي فِي قَضَائِكَ خَيْرَ مَا حَتَمْتَ
वह्तिम ली फ़ी क़ज़ाइका ख़ैरा मा हतम्ता
और अपने फ़ैसलों में मेरे लिए वही बेहतरीन फ़ैसला मुक़र्रर फ़रमा जो तूने दूसरों के लिए मुक़र्रर किया है,
وَٱخْتِمْ لِي بَٱلسَّعَادَةِ فِيمَنْ خَتَمْتَ
वख़्तिम ली बिस्सआदति फीमन ख़तम्ता
और जिन लोगों की ज़िंदगी तू खुशहाली पर ख़त्म करता है, उन्हीं के साथ मेरी ज़िंदगी का भी ख़ातिमा फ़रमा,
وَأَحْيِنِي مَا أَحْيَيْتَنِي مَوْفُوراً
व अह्यिनी मा अह्यैतनी मौफ़ूरन
जब तक तू मुझे ज़िंदा रखे, मुझे भरपूर और बेहतर ज़िंदगी अता फ़रमा,
وَأَمِتْنِي مَسْرُوراً وَمَغْفُوراً
व अमितनी मस्रूरन व मग़फ़ूरन
और मुझे इस हाल में मौत दे कि मैं खुश भी रहूँ और बख़्शा हुआ भी रहूँ,
وَتَوَلَّ أَنْتَ نَجَاتِي مِنْ مُسَاءَلَةِ ٱلبَرْزَخِ
व तवल्ला अन्ता नजाति मिन मुसाअलतिल-बरज़ख़
और बरज़ख़ की पूछताछ से मेरी निजात की ज़िम्मेदारी तू ख़ुद संभाल लेना,
وَٱدْرأْ عَنِّي مُنكَراً وَنَكِيراً
वद्रअ अन्नी मुंकरन व नकीरन
और मुझसे मुनकर और नकीर को दूर रख,
وَأَرِ عَيْنِي مُبَشِّراً وَبَشِيراً
व अरि ऐनी मुबश्शिरन व बशीरन
और मेरी आँखों के सामने मुबश्शिर और बशीर को लाकर खड़ा कर,
وَٱجْعَلْ لِي إِلَىٰ رِضْوَانِكَ وَجِنَانِكَ مَصِيراً
वजअल ली इला रिज़वानिका व जिनानिका मसीरन
और मेरा ठिकाना अपनी रज़ा और अपनी जन्नतों की तरफ़ बना दे,
व ऐशन क़रीरन
और मुझे सुकून और चैन की ज़िंदगी अता फ़रमा,
व मुल्कन कबीरन
और बहुत बड़ी बादशाही अता फ़रमा,
وَصَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِهِ كَثِيراً
व सल्लि अला मुहम्मदिव्व आलेहि कसीरन
और मुहम्मद और उनकी आल पर बहुत ज़्यादा दरूद भेज।
वसीले
यह दुआ सय्यद इब्न ताऊस ने अपनी किताब
‘इक़बालुल आमाल’ में
‘मआलिमुद्दीन’ की किताब से
मुहम्मद इब्न अबी अर-रवाद अर-रवासी से
मुहम्मद इब्न जाफ़र अद-दह्हान के हवाले से
इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु तआला फ़रजहुश्शरीफ़) से रिवायत की है।
हवाला: इक़बालुल आमाल, पृष्ठ 644; अल-मज़ार अल-कबीर, पृष्ठ 179; मिस्बाहुज़-ज़ाएर, पृष्ठ 56; बिहारुल अनवार, जिल्द 98, पृष्ठ 391; सह़ीफ़ा अल-महदी, पृष्ठ 188।
(यह दुआ मस्जिद सअसा में भी पढ़ी जाती है।)
दुआ का बैकग्राउंड – अन-नज्मुस साक़िब से
वाक़िआ नंबर अट्ठाईस: रजब के महीने में मस्जिद सअसा में इमाम (अ.स.) द्वारा पढ़ी गई दुआ
अज़ीज़ सय्यद अली बिन ताऊस ने अपनी किताब *इक़बाल* में मुहम्मद बिन अबिल रुवाद रवासी से रिवायत की है कि उन्होंने कहा:
वह रजब के महीने के एक दिन मुहम्मद बिन जाफ़र दह्हान के साथ
मस्जिद सहला की तरफ़ निकले।
उन्होंने कहा: मुझे मस्जिद सअसा ले चलो, क्योंकि यह एक मुबारक मस्जिद है
और अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) ने वहाँ नमाज़ अदा की है और
हुज्जतों ने उन मुबारक मुक़ामात पर क़दम रखा है।
इस पर मेरा दिल उस मस्जिद की तरफ़ माइल हो गया। मैं वहाँ नमाज़ अदा कर रहा था
कि मैंने देखा एक शख़्स ऊँट से उतरा और उसे साए में बाँध दिया।
फिर वह अंदर दाख़िल हुआ और दो रकअत नमाज़ अदा की
और उन दोनों रकअतों को बहुत तवील किया।
फिर उसने अपने हाथ उठाए और इस तरह दुआ पढ़ी:
“अल्लाहुम्मा या ज़ल मिन्ना…”
आख़िर तक… फिर वह उठा, अपने ऊँट के पास गया और
उस पर सवार हो गया।
इब्ने जाफ़र दह्हान ने मुझसे कहा: क्या मैं खड़ा न हो जाऊँ
और उसके पास न जाऊँ? क्या मैं उससे यह न पूछूँ कि वह कौन है?
तो हम खड़े हुए और उसके पास गए। फिर हमने उससे कहा:
हम तुम्हें अल्लाह का वास्ता देते हैं, हमें बताओ कि तुम कौन हो?
उसने जवाब दिया: मैं तुम्हें अल्लाह तआला का वास्ता देता हूँ,
तुम क्या समझते हो कि मैं कौन हूँ?
इब्ने जाफ़र दह्हान ने जवाब दिया: मेरा ख़याल है कि आप ख़िज़्र हैं।
फिर उसने पूछा: क्या तुमने भी ऐसा ही सोचा है?
मैंने जवाब दिया: मैंने भी यही सोचा कि आप ख़िज़्र हैं।
उसने कहा: अल्लाह की क़सम! मैं वही हूँ जिसे ख़िज़्र भी देखने का मुहताज है।
लौट जाओ, क्योंकि मैं तुम्हारे ज़माने का इमाम हूँ।
शैख़ मुहम्मद बिन मशहदी ने अपनी किताब *मज़ार कबीेर* (पृष्ठ 144–146) में और
शैख़ शहीद अव्वल ने *मज़ार* (पृष्ठ 264–266) में अली बिन
मुहम्मद बिन अब्दुर्रहमान शुस्तरी से रिवायत की है कि उन्होंने कहा:
मैं बनी रवास क़बीले के पास से गुज़रा।
कुछ भाइयों ने कहा: काश! तुम हमें मस्जिद सअसा ले चलो
ताकि हम वहाँ नमाज़ अदा कर सकें, क्योंकि यह रजब का महीना है और
इस महीने उस मुक़ाम की ज़ियारत करना मुस्तहब है,
क्योंकि इन मुक़ामात से इमाम गुज़र चुके हैं,
इन्हीं जगहों पर नमाज़ अदा की है और मस्जिद सअसा
उन्हीं मुक़ामात में से एक है।
इस तरह हम उस मस्जिद की तरफ़ माइल हो गए कि
अचानक हमने देखा एक ऊँट जिसके पैर बँधे हुए थे और
वह मस्जिद के दरवाज़े पर सो रहा था।
हम अंदर दाख़िल हुए तो अचानक हमने देखा
एक शख़्स हिजाज़ी लिबास में, जिसके सर पर
हिजाज़ के लोगों जैसा अमामा था।
वह बैठा हुआ था और यह दुआ पढ़ रहा था,
जिसे मैंने और मेरे साथी ने याद कर लिया;
वह दुआ यह है:
“अल्लाहुम्मा या ज़ल मेनानिस-साबिग़ा… वग़ैरह”
फिर उसने सज्दा बहुत तवील किया। इसके बाद वह उठा,
अपने ऊँट पर सवार हुआ और चला गया।
मेरे साथी ने कहा: मेरा ख़याल है कि वह ख़िज़्र थे। फिर हमारे साथ क्या हुआ
कि हम उनसे बात भी न कर सके? हमारी ज़बान बंद हो गई थी।
हम बाहर निकले और इब्ने अबिल रुवाद रवासी से मुलाक़ात हुई। उन्होंने पूछा:
तुम कहाँ से आ रहे हो?
हमने जवाब दिया: मस्जिद सअसा से, और हमने पूरा वाक़िआ बयान कर दिया।
उन्होंने कहा: यह ऊँट सवार हर दो या तीन दिन में मस्जिद सअसा आता है
और वह किसी से बात नहीं करता।
हमने पूछा: वह कौन है?
उन्होंने पूछा: तुम क्या समझते हो कि वह कौन है?
हमने कहा: हमें लगा कि वह ख़िज़्र हैं।
तो उन्होंने कहा: अल्लाह की क़सम! मैं किसी ऐसे शख़्स को नहीं जानता
जिसे देखने के लिए ख़िज़्र मोहताज हों। हिदायत और रहनुमाई के साथ लौट जाओ।
मेरे साथी ने मुझसे कहा: अल्लाह की क़सम! वही ज़माने के मालिक
(इमाम-ए-ज़माना अ.स.) हैं।
मुसन्निफ़ कहते हैं: ज़ाहिर तौर पर ये दो अलग-अलग वाक़िआत हैं और
दो बार इस दुआ को रजब के महीने में उसी मस्जिद में
इमाम (अ.स.) से सुना गया है, ख़ास तौर पर अली बिन मुहम्मद शुस्तरी द्वारा,
इस अंदाज़ में कि हज़रत ने उनसे कलाम भी किया और
उन्होंने भी इमाम से बातचीत की।
मशहूर उलमा ने इस दुआ को मस्जिद सअसा की मशहूर इबादतों में
शुमार किया है और रजब के महीने के आमाल व दुआओं की किताबों में
इसे शामिल किया है।
ऐसा मालूम होता है कि इमाम (अ.स.) का इस दुआ को पढ़ना
एक ख़ास मुक़ाम; मस्जिद सअसा, और एक ख़ास वक़्त; रजब से मुताल्लिक़ था।
हालाँकि यह भी ज़ाहिर होता है कि यह दुआ मुतलक़ दुआओं में से है
और इसके लिए वक़्त और मुक़ाम की कोई पाबंदी नहीं है।