ज़ैनब के मआनी अक्सर “वो जो बहुत ज़्यादा रोती हो” बताए जाते हैं, और कुछ लुग़वी माख़ज़ के मुताबिक़ पहले यह नाम एक ख़ूबसूरत या ख़ुशबूदार दरख़्त के लिये भी इस्तेमाल होता था। यह नाम दो अरबी अल्फ़ाज़ का मुरक्कब भी हो सकता है: “ज़ैन” (ख़ूबसूरती) और “अब” (बाप)।
पैदाइश 5 जमादी-उल-अव्वल 5 हिजरी (1 शाबान भी दर्ज है) वफ़ात - 15 रजब 62 हिजरी (कुछ और तारीख़ें भी दर्ज हैं: जमादी-उस-सानी, 24 सफ़र, या 16 ज़ुल-हिज्जा)
ज़ैनब के मआनी अक्सर “वो जो बहुत ज़्यादा रोती हो” बताए जाते हैं, और कुछ लुग़वी माख़ज़ के मुताबिक़ पहले यह नाम एक ख़ूबसूरत या ख़ुशबूदार दरख़्त के लिये भी इस्तेमाल होता था। यह नाम दो अरबी अल्फ़ाज़ का मुरक्कब भी हो सकता है: “ज़ैन” (ख़ूबसूरती) और “अब” (बाप)। पैदाइश 5 जमादी-उल-अव्वल 5 हिजरी (1 शाबान भी दर्ज है) वफ़ात - 15 रजब (इमेज) (कुछ और तारीख़ें भी दर्ज हैं: जमादी-उस-सानी, 24 सफ़र, या 16 ज़ुल-हिज्जा)
सैय्यदा ज़ैनब (स.अ.), इमाम अली (अ.स.) और सैय्यदा फ़ातिमा (स.अ.) की साहिबज़ादी, एक मिसाली ख़ातून थीं—क़ाबिलियत, ज़ेहन, इल्म, बसीरत, शुजाअत और सब्र-ओ-इस्तेक़ामत की मालिक। उन्होंने अपनी इलाही ज़िम्मेदारियाँ अपनी पूरी तवज्जोह और बेहतरीन अंदाज़ में अदा कीं। वह उस ख़ानदान में पैदा हुईं जिसकी बुनियाद रसूल (स.अ.व.) ने रखी—तारीख़ की सबसे नुमायाँ शख़्सियत। रसूल (स.अ.व.) की ज़ौजा सैय्यदा ख़दीजा (स.अ.) जो बेहद वफ़ादार ख़ातून थीं, उनकी ननिहाल की नानी थीं, और उनकी दादी फ़ातिमा बिन्त असद थीं जिन्होंने रसूल (स.अ.व.) की परवरिश और कफ़ालत की। इस ख़ानदान के अफ़राद तर्तीब-ए-मरातिब में सब के सब अज़ीम थे।
सैय्यदा ज़ैनब (स.अ.) विलाायत के आसमान की एक चमकदार सितारा थीं जो पाँच सूरजों से क़ुद्सियत की किरणें हासिल करता रहा। अपनी पाक अस्ल और परहेज़गार तरबियत की बदौलत उन्होंने कर्बला (इराक़) में ऐसी अज़ीम हिम्मत और इस्तेक़ामत का मुज़ाहिरा किया।
सैय्यदा ज़हरा (स.अ.) की साहिबज़ादी की ज़िंदगी हमेशा मुश्किलात से भरी रही, मगर उन्होंने कभी मुशकिलात से मुक़ाबला करने से ख़ौफ़ नहीं किया; इसी ने उनके सब्र को बढ़ाया और उनकी रूह को बुलंदी अता की।
किताब “Victory of Truth” (विक्ट्री ऑफ़ ट्रुथ) से इक्तिबास....
यह उस वक़्त की बात है जब मुसलमान रसूल [स.अ.व.] और उनके अहले-बैत के साथ हिजरत करके मदीना आ चुके थे; हिजरत के पाँच साल बाद रसूल की बेटी हज़रत फ़ातिमा [अ.स.] के यहाँ एक बच्ची पैदा हुई। जब उनके वालिद इमाम अली [अ.स.] ने पहली बार अपनी बेटी को देखा तो उनके साथ इमाम हुसैन [अ.स.] भी थे, जो उस वक़्त तक़रीबन तीन साल के थे। बच्चे ने ख़ुशी से कहा, “अब्बा, अल्लाह ने मुझे एक बहन अता की है।” यह सुनकर इमाम अली [अ.स.] रो पड़े। जब हुसैन [अ.स.] ने पूछा कि आप क्यों रो रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि जल्द ही तुम्हें मालूम हो जाएगा। हज़रत फ़ातिमा [अ.स.] और इमाम अली [अ.स.] ने अपनी बच्ची का नाम कुछ दिनों तक नहीं रखा, क्योंकि वे रसूल के सफ़र से वापस आने का इंतज़ार कर रहे थे ताकि वही नाम तजवीज़ करें।
जब बच्ची को आख़िरकार रसूल [स.अ.व.] के सामने पेश किया गया तो उन्होंने उसे गोद में लिया और बुसा दिया। फिर फरिश्ता जिब्रईल आए और वह नाम पहुँचाया जो उसका होना था, और फिर जिब्रईल रो पड़े। रसूल [स.अ.व.] ने पूछा कि जिब्रईल क्यों रो रहे हैं, तो उन्होंने जवाब दिया, “ऐ रसूल-ए-ख़ुदा, यह लड़की बचपन से ही दुनिया की आज़माइशों और मुसीबतों में उलझी रहेगी—सबसे पहले वह आपकी जुदाई पर रोएगी; फिर अपनी माँ का ग़म मनाएगी, फिर अपने वालिद का, फिर अपने भाई हसन का। इसके बाद उसे कर्बला की सरज़मीं और उस वीरान रेगिस्तान की आज़माइशों का सामना करना होगा, जिसकी वजह से उसके बाल सफ़ेद हो जाएंगे और उसकी पीठ झुक जाएगी।”
जब अहले-बैत ने यह पेशगोई सुनी तो सब आंसुओं में डूब गए। इमाम हुसैन [अ.स.] को अब समझ आया कि पहले उनके वालिद क्यों रोए थे। फिर रसूल [स.अ.व.] ने उनका नाम ज़ैनब [अ.स.] रखा। जब ज़ैनब की विलादत की ख़बर सलमान अल-फ़ारसी तक पहुँची तो वह इमाम अली [अ.स.] के पास मुबारकबाद देने आए, मगर ख़ुशी और मुसर्रत के बजाय उन्होंने इमाम अली [अ.स.] को अश्कबार देखा; फिर उन्हें भी कर्बला के वाक़िआत और ज़ैनब [अ.स.] पर आने वाली मुसीबतों से आगाह किया गया।
एक दिन, जब ज़ैनब [अ.स.] तक़रीबन पाँच साल की थीं, उन्होंने एक अजीब और डरावना ख़्वाब देखा। शहर में एक सख़्त आँधी उठी जिसने ज़मीन और आसमान को तारीक कर दिया। छोटी बच्ची इधर-उधर उछाली जाने लगी, और अचानक वह एक बहुत बड़े दरख़्त की शाख़ों में अटक गई। मगर आँधी इतनी शदीद थी कि उसने दरख़्त को जड़ से उखाड़ दिया। ज़ैनब [अ.स.] ने एक शाख़ पकड़ ली मगर वह टूट गई। घबराकर उन्होंने दो टहनियाँ पकड़ीं, मगर वे भी टूट गईं और वह बिना सहारे गिरने लगीं।
फिर उनकी आँख खुल गई। जब उन्होंने यह ख़्वाब अपने नाना रसूल [स.अ.व.] को सुनाया तो रसूल बहुत रोए और फ़रमाया, “ऐ मेरी बेटी, वह दरख़्त मैं हूँ जो जल्द ही इस दुनिया से चला जाऊँगा। शाख़ें तुम्हारे वालिद अली और तुम्हारी वालिदा फ़ातिमा ज़हरा हैं, और टहनियाँ तुम्हारे भाई हसन और हुसैन हैं। वे सब तुम्हारे पहले इस दुनिया से रुख़्सत हो जाएंगे, और तुम उनकी जुदाई और ग़म सहोगी।”
उनकी विलादत की सही तारीख़ मुक़र्रर नहीं; मगर ज़्यादा क़ुबूल की गई तारीख़ें यह हैं: 1 शाबान या 5 जमादी-उल-अव्वल—पाँचवें या छठे साल हिजरी; या 9 रमज़ान—नौवें साल हिजरी। (स. 45-6; और स. 68) वफ़ात की तारीख़ भी मुक़र्रर नहीं: आम तौर पर (मशहूर तौर पर) दमिश्क़ में दफ़्न होना बताया जाता है। दमिश्क़ में दफ़्न होने के बारे में दो वज़ाहतें मिलती हैं: एक यह कि वापसी के बाद यज़ीद ने फिर से उन पर हमला कराया—इस बार मदीना में—और उन्हें क़ैदी बनाकर दमिश्क़ ले जाया गया जहाँ उनकी वफ़ात हुई; दूसरी यह कि मदीना में क़हत/अकाल पड़ा तो उनके शौहर ने कुछ वक़्त के लिये ख़ानदान को दमिश्क़ के क़रीब एक देहात में ले गए, और वहीं या तो बाग़ में नमाज़ के दौरान किसी माली की फावड़े की चोट से हादसतन ज़ख़्मी होकर वफ़ात हुई, या किसी शदीद बीमारी का शिकार हुईं जिससे शिफ़ा न हो सकी। वफ़ात की याद (सालगिरह) इन तारीख़ों में मनाई जाती है: 15 रजब, 11 या 21 जमादी-उस-सानी, 24 सफ़र, या 16 ज़ुल-हिज्जा।
वफ़ात की सालगिरह 15 रजब
अहले-बैत-ए-रसूल के लिये सायबान-ए-हिफ़ाज़त और आने वाली नस्लों तक पैग़ाम-ए-कर्बला पहुँचाने वाली, बीबी ज़ैनब बिन्त अली (अ.स.) का मक़ाम तमाम मुसलमानों के दिलों में ख़ास है।
ऐसे रूहानी पाकीज़ा माहौल में परवरिश पाई—नाना, माँ, बाप और भाई सब शजर-ए-इस्मत और उस घर से ताल्लुक़ रखते थे जहाँ क़ुरआन नाज़िल हुआ—इसलिये यह फज़ा उन्हें बुलंदी तक पहुँचाने वाली थी।
अगरचे उन्होंने अपनी वालिदा को बहुत कम उम्र में (तक़रीबन 7 साल की उम्र में) खो दिया, मगर बाद में एक दूसरी फ़ातिमा (जो आगे चलकर उम्मुल बनीन के नाम से मशहूर हुईं) उनके वालिद की ज़िंदगी में आईं और उम्मत के मुस्तक़बिल रहनुमाओं की तरबियत का भारी काम सँभाला। इसके बावजूद इतनी कम उम्र में माँ का बिछड़ना उनकी मिसाली ख़ुसूसियात अपनाने में रुकावट न बना। जिस तरह उनकी माँ मस्जिद-ए-नबी में अपने हक़ छीने जाने पर (फ़दक के सिलसिले में) हक़ की आवाज़ बनीं, उसी तरह जब अहले-बैत का क़ाफ़िला इब्ने ज़ियाद और यज़ीद के दरबारों में ले जाया गया तो फ़ातिमा की यह बेटी—माँ का अक्स—ख़ड़ी हुईं और अहले-बैत और उनके हक़ूक़ का दिफ़ा किया।
तमाम नस्लों के लिये एक मिसाली ख़ातून—उनकी शोहरत की एक वजह इस्लाम के बारे में उनका गहरा इल्म है। उन्होंने किसी मदरसे में जाकर दीनी तालीम हासिल नहीं की, मगर क़ुरआन का हिफ़्ज़, उसकी तफ़सीर, और दीनी मआриф के दूसरे पहलुओं में वह एक मरजिअ/मुतबर शख़्सियत मानी गईं। बल्कि इसी वजह से कि उन्होंने किसी औपचारिक मदरसे में तालीम नहीं ली, उनके भतीजे—चौथे इमाम—अक्सर उन्हें “वह आलिमा जिनका कोई औपचारिक उस्ताद नहीं था” कहकर याद करते थे।
आज की बहनों के लिये एक अहम सबक़: कूफ़ा में अपने वालिद अमीरुल मोमिनीन के दौर में, उन्होंने मुस्लिम ख़वातीन के लिये ख़ास मजालिस/सत्र आयोजित किये जहाँ वे इस्लाम और क़ुरआन की तफ़सीर सीखने आती थीं। इस तरह मर्दों के बजाय उन्होंने खुद अपनी जिंस की ख़वातीन को न सिर्फ़ अकीदा/इल्म बल्कि इस्लामी अख़लाक़ और आदाब भी सिखाए।
मगर उनका आला मक़ाम और मर्तबा उन्हें ज़ुल्म के पंजों से महफ़ूज़ न रख सका।
उनकी वफ़ात के हालात मुबहम हैं और कर्बला (61 हिजरी) के बाद से 62 हिजरी तक इस अज़ीम ख़ातून के बारे में रिवायतों में इख़्तिलाफ़ भी है; मगर ज़्यादातर मोअर्रिख़ीन लिखते हैं कि कर्बला के वाक़िआ के बाद वह सिर्फ़ एक साल ज़िंदा रहीं और तक़रीबन 57 साल की उम्र में इस फ़ानी दुनिया से रुख़्सत हो गईं।
कहाँ दफ़्न हुईं—इस पर भी रिवायतें मुख़्तलिफ़ हैं; तीन मशहूर राय पेश की जाती हैं: कुछ कहते हैं मदीना में; कुछ मिस्र में जहाँ सैय्यदा ज़ैनब का बड़ा मज़ार है; जबकि तीसरी और ज़्यादा मज़बूत राय यह है कि दमिश्क़ में वफ़ात हुई।
“सलाम हो उन पर जिस दिन वह पैदा हुईं, जिस दिन वह वफ़ात पाईं, और जिस दिन फिर ज़िंदा उठाई जाएँगी…”
माख़ज़: http://www.world-federation.org/Secretariat/Articles/Archive/Wafat_SayyidaZainab.htm
15 रजब 62 हिजरी। बीबी ज़ैनब [स.अ.] की वफ़ात की सालगिरह:*
*_इस ग़म और मातम के मौक़े पर, मैं रसूल-ए-ख़ुदा (स.अ.व), अहले-बैत-ए-अतहार (अ.स), इमाम-ए-मेहदी (अ.त.फ) और तमाम मोमिनीन की ख़िदमत में तअज़ियत पेश करता/करती हूँ:*_
सब्र का पहाड़, कर्बला की पैहवान, और अपने भाई इमाम हुसैन (अ.स) के पैग़ाम की नजात देने वाली!
*रसूल-ए-ख़ुदा [स.अ.व] ने पूछा कि जिब्रईल क्यों रो रहे हैं, तो उन्होंने जवाब दिया:*
_”ऐ रसूल-ए-ख़ुदा, यह लड़की बचपन से ही दुनिया की आज़माइशों और मुसीबतों में उलझी रहेगी”_
कर्बला से दमिश्क़, फिर मदीना तक तमाम आफ़ात सहकर, बीबी ज़ैनब [स.अ] बदल चुकी थीं—बाल सफ़ेद, पीठ झुकी हुई। अगरचे वापसी पर शौहर से मुलाक़ात हुई, मगर इतनी सख़्त आज़माइशों के बाद वह ज़्यादा अरसा ज़िंदा न रहीं।
क़ैद से रिहाई के बाद, बीबी ज़ैनब (स.अ), अहले-बैत (अ.स) के दूसरे अफ़राद के साथ मदीना पहुँचीं। मदीना में भी उन्होंने तबलीग़ जारी रखी। इस्लाम तेज़ी से फैला।
मदीना के हाकिम को सख़्त डर लगा और उसने यज़ीद को लिखा कि बीबी ज़ैनब (स.अ) मदीना में हैं और तेज़ी से इस्लाम फैला रही हैं और वह उसकी सल्तनत को तोड़ देंगी।
यज़ीद ने हुक्म दिया कि बीबी ज़ैनब (स.अ) मदीना छोड़कर मदीना के बाहर एक गाँव में क़ियाम करें।
फिर वहाँ से उन्हें “मिसर” (मिस्र) की तरफ़ भेजा गया।
वहाँ भी उन्होंने इस्लाम की तबलीग़ जारी रखी।
यज़ीद फिर डर गया तो उसने एक बार फिर हुक्म दिया कि उन्हें क़ैदी बनाकर “शाम” लाया जाए।
जब उन्हें शाम की सरहद पर एक छोटे गाँव में लाया गया तो उन्होंने वहीं अपनी ज़िंदगी के आख़िरी दिन गुज़ारे।
इसी वजह से यह बस्ती “अस-सैय्यदा ज़ैनब” के नाम से मशहूर हुई।
मोअर्रिख़ीन के मुताबिक़ बीबी ज़ैनब के शौहर—अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र-ए-तय्यार—ने आसपास की ज़मीन ख़रीदकर बीबी ज़ैनब (स.अ) के नाम पर रौज़ा/ज़ियारतगाह बनवाई।
*अल्लाह (स.व.त) हम सब को उनकी ज़ियारत का मौक़ा अता फ़रमाए... आमीन *
अस्सलामु अलैकि या बिन्त मन हिसाबुन्नासि अलैहि वल कौसरु बैना यदैहि वन्नस्सु यौमल ग़दीरि अलैहि, व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू
तुझ पर सलाम और अल्लाह की रहमत व बरकत हो, ऐ उस हस्ती की बेटी जिनके ज़िम्मे लोगों का हिसाब है, जिनके सामने कौसर है, और जिन पर यौमे ग़दीर की नुस्स (घोषणा) हुई।
अस्सलामु अलैकि या बिन्त मन क़ादा ज़िमामा नाक़तिहा जिब्राईलु व शारकहा फी मुसाबिहा इस्राफीलु व ग़ज़िबा बिसबबिहा रब्बुल जलीलु व बका लि-मुसाबिहा इब्राहीमुल ख़लीलु व नूहुन व मूसा अलकलीमु फी कर्बला
तुझ पर सलाम हो, ऐ उस बीबी की बेटी जिनकी ऊँटनी की लगाम जिब्रईल ने थामी, जिनके मसाइब में इस्राफील शरीक हुआ, जिनके सबब रब्बे जलील ग़ज़बनाक हुआ, और कर्बला के मसाइब पर इब्राहीम ख़लीलुल्लाह, नूह और मूसा कलीमुल्लाह रोए।
अस्सलामु अलैकि व अला स्सादातिल अतहारिल अख्यार, व हुम हुज्जतुल्लाहि अलल अक़्तार व सादातुल अरज़ि वस्समा इललज़ीना हुब्बुहुम फ़र्ज़ुन अला अअनाक़ि कुल्लिल ख़लाइक़
तुझ पर सलाम हो और पाक व नेकी वाले सादात पर भी सलाम हो—वो अल्लाह की हुज्जतें हैं तमाम सरज़मीनों पर, ज़मीन व आसमान के सरदार हैं, जिनकी मुहब्बत तमाम मख़लूक़ की गर्दनों पर फ़र्ज़ है।
अस्सलामु अलैकि या मन ज़हरत महब्बतुहा लिलहुसैनिल मज़लूमि फी मवारिद अदीदा व तह्मिलुल मसाइबल मुहरिक़ता लिलक़ुलूबि मअ तहम्मुलात शदीदा
तुझ पर सलाम हो—जिसकी मुहब्बत हुसैन मज़लूम के लिए कई मौक़ों पर ज़ाहिर हुई, और जिसने दिलों को जला देने वाली मुसीबतों को सख़्त सब्र के साथ उठाया।
السَّلاَمُ عَلَيْكِ يَا مَن حَفِظَتِ الإمَامَ في يَومِ عَاشُوراءَ في القَتْلى وَبَذلَتْ نَفسَها في نجَاةِ زَينِ العَابِدينَ في مجَلِسِ أشْقَى الأشْقِياءِ وَنَطَقَتْ كَنُطْقِ عَليٍّ عَليهِ السَّلاَمُ في سِكَكِ الكُوفَةِ وَحَولهَا كَثيرٌ مِن الأعْدَاءِ
अस्सलामु अलैकि या मन हफ़िज़तिल इमामा फी यौमि आशूरा फिल क़त्ला व बज़लत नफ़्सहा फी नजाते ज़ैनिल आबिदीन फी मजलिसि अश्क़ल अश्क़िया व नत़क़त कनुत़्क़ि अलीय्यिन अलैहिस्सलामु फी सिककिल कूफ़ा व हौलहा कसीरुम मिनल अअदा
तुझ पर सलाम हो—जिसने यौमे आशूरा में क़त्ला के बीच इमाम की हिफ़ाज़त की, और अश्क़ल अश्क़िया की महफ़िल में ज़ैनुल आबिदीन की निजात के लिए अपनी जान तक क़ुर्बान करने को तैयार हुई, और कूफ़ा की गलियों में—जहाँ बहुत से दुश्मन थे—अली (अ.) की तरह ख़िताब किया।
अस्सलामु अलैकि या मन नतहत जबीन्हा बि-मुक़द्दमिल महमलि इज़ रअत रअस सैय्यिदिश्शुहदा’ व यखरुजुद्दमु मिन तहत क़िनाअिहा व मिन महमलिहा बहैसु यरा मन हौलहा मिनल अअदा
तुझ पर सलाम हो—जिसने महमल के आगे वाले हिस्से से अपनी पेशानी मारी जब उसने सैय्यिदुश्शुहदा का सर देखा, और उसके नक़ाब के नीचे से और महमल से ख़ून इस तरह जारी हुआ कि आसपास के दुश्मनों ने भी देख लिया।
السَّلاَمُ عَلَيْكِ يا تالِيَةَ المَعْصومِ
अस्सलामु अलैकि या तालियतल मासूम
तुझ पर सलाम हो, ऐ मासूम इमाम की नायब/नुमाइंदा।
السَّلاَمُ عَلَيْكِ يا ممُْتَحَنَةُ في تحَمُّلِ المَصائبِ كالحُسَينِ المَظلُومِ، وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ
अस्सलामु अलैकि या मुम्तहना फी तहम्मुलिल मसाइबि कलहुसैनिल मज़लूम, व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू
तुझ पर सलाम और अल्लाह की रहमत व बरकत हो—ऐ वो जो मुसीबतों के सब्र में हुसैन मज़लूम की तरह आज़माई गई।
अस्सलामु अलैकि अय्यतुहल मुता'हैय्येरतो फी वुकूफ़िकी अला जसदि सैय्यिदिश्शुहदा’ व ख़ातब्ति जद्दकि रसूलल्लाहि सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि बिहाज़न्निदा’: "सल्ला अलैका मलाइकतुस्समा’! हाज़ा हुसैनुन बिलअरा’ मस्लूबुल इमामति व र्रिदा’, मुक़त्तउल अअदा’, व बनातुकी सबाया! वालियल्लाहे मुश्तका"
तुझ पर सलाम हो—जब तू सैय्यिदुश्शुहदा के जिस्म के पास खड़ी होकर हैरान थी और अपने नाना रसूलुल्लाह (स.) को इस पुकार के साथ मुख़ातिब हुई: “आसमान के फ़रिश्ते आप पर दुरूद भेजें! ये हुसैन खुले मैदान में है—अमामा और चादर से महरूम, आज़ा कटे हुए, और आपकी बेटियाँ क़ैद में! और शिकायत सिर्फ़ अल्लाह से है।”
व क़ालत: "या मुहम्मदु! हाज़ा हुसैनुन तस्फी अलैहि रीहुस्सबा, मज़ज़ूधुर्रअसि मिनल क़फ़ा, क़तील औलादिल बिघा. वा हुज़्नाहु अलैका या अबा अब्दिल्लाह."
और तूने कहा: “ऐ मुहम्मद! ये हुसैन है—जिस पर सबा की हवा धूल उड़ाती है, जिसका सर पीछे से कटा हुआ है, बदकारों की औलाद के हाथों क़त्ल हुआ। हाय मेरा ग़म आप पर, ऐ अबा अब्दिल्लाह!”
अस्सलामु अलैकि या मन तहय्यज क़ल्बुहा लिलहुसैनिल मज़लूमिल उरयानिल मतरूहि अलस्सरा व क़ालत बि-सौतिन हज़ीन: "बि-अबी मन नफ़्सी लहुल फ़िदा’, बि-अबी अलमह्मूमु हत्ता क़ज़ा, बि-अबी मन शैबतहु तक़तिरु बिद्दिमा’."
तुझ पर सलाम हो—जिसका दिल हुसैन मज़लूम, बे-लिबास, ख़ाक पर पड़े हुए के लिए तड़प उठा, और तूने ग़मगीन आवाज़ में कहा: “मेरे बाप क़ुर्बान उस पर जिसकी फ़िदा मेरी जान हो! मेरे बाप क़ुर्बान उस ग़मज़दा पर जो आख़िरकार शहीद हुआ! मेरे बाप क़ुर्बान उस पर जिसकी सफ़ेदी-ए-दाढ़ी से ख़ून टपक रहा था!”
अस्सलामु अला मन बक़त अला जसदि अखीहा बैनल क़त्ला हत्ता बका लि-बुकाइहा कुल्लु सदीक़िन व अदूव्व, व रआन्नासु दुमूअल ख़ैलि तनहदिरु अला हवारीरिहा अलत्तह्क़ीक़
सलाम हो उस पर जिसने अपने भाई के जिस्म पर क़त्ला के बीच ऐसा रोया कि उसके रोने पर हर दोस्त और दुश्मन भी रो पड़ा, और लोगों ने यक़ीनन घोड़ों के आँसू भी देखे जो उनके खुरों पर बह रहे थे।
अस्सलामु अला मन तकफ़्फ़लत व जमा‘त फी अस्रि आशूरा बनाति रसूलिल्लाहि व अत्फ़ालिल हुसैन व क़ामत लहा अलक़ियामा फी शहादतित् तिफ़्लैनिल ग़रीबैनिल मज़लूमैन
सलाम हो उस पर जिसने यौमे आशूरा की शाम को रसूलुल्लाह की बेटियों और हुसैन के बच्चों को समेटा/हिफ़ाज़त की, और दो ग़रीब मज़लूम बच्चों की शहादत पर उसके लिए क़यामत-सी बरपा हो गई।
السَّلاَمُ عَلى مَن لم تَنَمْ عَينُها لأجْلِ حِراسَةِ آل رَسولِ اللهِ في طَف نِينَوَى وَصَارَت أَسيرَةً ذَليلَةً بِيَدِ الأعْداءِ
अस्सलामु अला मन लम तनम ऐनुहा लि-अज्लि हिरासतِ आलि रसूलिल्लाहि फी तफ़्फ़ नीनवा व सारत असीरतन ज़लीलतन बि-यदिल अअदा
सलाम हो उस पर जिसकी आँखें आल-ए-रसूल की निगहबानी के लिए तफ़्फ़-ए-नीनवा में नहीं सोईं, और जो दुश्मनों के हाथों ज़लील क़ैदी बना दी गई।
सलाम हो उस पर जिसे बिना बिछावन के ऊँट पर बिठाया गया, और उसने अपने भाई अबुल फ़ज़्ल को यूँ पुकारा: “ऐ मेरे भाई अबुल फ़ज़्ल! तू ही था जिसने मुझे ऊँट पर सवार कराया जब मैं मदीना से निकलना चाहती थी।”
सलाम हो उस पर जिसने इब्ने ज़ियाद की महफ़िल में वाज़ेह दलीलों से एह्तिजाज किया, और सच्ची बय्यिनात के साथ जवाब दिया; जब इब्ने ज़ियाद ने ज़ैनब (स.) से कहा: “तूने अपने भाई हुसैन के बारे में अल्लाह की सज़ा/सुनअ को कैसा देखा?” तो उसने कहा: “मैंने जमीला के सिवा कुछ नहीं देखा।”
السَّلاَمُ عَلَيْكِ يا أَسيرَةً بِأيْدي الأعْداءِ في الفَلواتِ وَرَأيْتِ أهْلِ الشّامِ في حَالَةِ العَيشِ والسُّرورِ وَنشْرِ الرّاياتِ
अस्सलामु अलैकि या असीरतन बि-ऐदिल अअदा’ फिल फलवात व रअैत अह्लश्शामि फी हालतिल ऐशि वस्सुरूर व नश्रिर्रायात
तुझ पर सलाम हो—ऐ वो जो खुले मैदानों में दुश्मनों के हाथों क़ैद रही, और तूने अहले शाम को ऐश-ओ-सुरूर और झंडे फैलाने की हालत में देखा।
अस्सलामु अला मन शुद्दल हबलु अला अ़ुदुदिहा व उनुक़िल इमामि ज़ैनिल आबिदीन व अद्खलूहा मअ सित्तत अशर नफ़रन् मिन आलि रसूलिल्लाहि व हुम कल-उसरा’ मुक़र्रनीन बिलहदीद मज़लूमीन
सलाम हो उस पर जिसके बाज़ू पर रस्सी कसी गई और इमाम ज़ैनुल आबिदीन की गर्दन पर भी, और उसे रसूलुल्लाह के आल से सोलह अफ़राद के साथ दाख़िल किया गया—जबकि वो लोहे की ज़ंजीरों में क़ैद मज़लूम क़ैदियों की तरह थे।
सुम्म क़ालत उम्मुल मसाइबि ज़ैनबु लहू: "क़ाइलन लअहल्लू व स्तहल्लू फरहान सुम्म क़ालू या यज़ीदु ला तुशल्ल, मुंतहियन् अला सनाय़ा अबी अब्दिल्लाहि अलैहिस्सलामु सैय्यिदि शबाबि अह्लिल जन्नah तन्कुतुहा बि-मिख़्सरतika?"
फिर उम्मुल मसाइब ज़ैनब ने उससे कहा—(तेरे इस क़ौल के बाद कि “वो खुश हो जाते…”): “ऐ यज़ीद! तुझे लकवा न लगे! क्या तू अबा अब्दिल्लाह (अ.)—सैय्यिदे शबाबे अहले जन्नत—के दाँतों/होठों के पास बैठकर अपनी छड़ी से उन्हें कुरेद रहा है?”
फिर तूने कहा: “अगरचे आफ़तों ने मुझे मजबूर किया कि मैं तुझसे मुख़ातिब हूँ, मैं तेरी हैसियत को अपने नज़दीक बहुत छोटा समझती हूँ, तेरी बदज़बानी को बहुत बड़ा, और तेरी मलामत को बहुत ज़्यादा; मगर आँखें आँसू से भरी हैं और सीने जल रहे हैं। सुनो! हैरत पर हैरत है कि अल्लाह की नजीब जमाअत को शैतान के ‘तुलक़ा’ गिरोह के हाथों क़त्ल किया जा रहा है!”
लइनि ات्तख़ज़्तना मघ्नमन लतजिदुना व शिकन मुग़्रमन हिना ला तजिदु इल्ला मा क़द्दमत यदाक, "व मा रब्बुका बि-ज़ल्लामइन लिलअबीद" फ़-इलल्लाहिल्मुश्तका व अलैहिल्मुअव्वलु फ़िश्शिद्दति वर्ऱखाअ
अगर तूने हमें ग़नीमत समझ लिया है तो तू जल्द ही हमें अपने लिए बोझ/जुर्माना पाएगा—उस वक्त जब तू अपनी ही कमाई के सिवा कुछ न पाएगा। “और तेरा रब बन्दों पर ज़ुल्म करने वाला नहीं।” पस शिकायत तो अल्लाह ही से है, और सख़्ती व आसाइश में उसी पर भरोसा है।
फकिद् कaidaka वस्अ सायका व नासिब् जहदaka! फ़वअल्लाहि ला तम्हूना ज़िक्रना व ला तुमीतु वह्याना व ला तुद्रिकु अमदना व ला तर्ख़सु अंका ‘आरहा
तो तू अपना मक्र कर ले, अपनी कोशिश कर ले, और अपनी पूरी ताक़त लगा ले! अल्लाह की क़सम, तू न हमारा ज़िक्र मिटा सकेगा, न हमारे वाही को मौत दे सकेगा, न हमारे मक़सद/हद तक पहुँच सकेगा, और न तुझसे ये रुसवाई दूर होगी।
وَهَلْ رَأْيُكَ إلاّ فَنَدٌ وَأيَّامُكَ إلاّ عَدَدٌ وَجَمْعُكَ إلاّ بَدَدٌ. يا يزيد أما سمعت قول الله تعالى: ﴿وَلَا تَحْسَبَنَّ الَّذِينَ قُتِلُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ أَمْوَاتًا بَلْ أَحْيَاءٌ عِنْدَ رَبِّهِمْ يُرْزَقُونَ.﴾
व हल रअयुका इल्ला फ़ना-दुन व अय्यामुका इल्ला ‘अदादुन व जमउका इल्ला बद दुन. या यज़ीदु अमा समिअत क़ौलल्लाहि तआला: "व ला तह्सबन्नल लज़ीना क़ुतिलू फी सबीलिल्लाहि अम्वातन बल अह्या’उन् इन्दा रब्बिहिम युर्ज़क़ून"
और क्या तेरी राय/तदबीर बे-बुनियाद नहीं, तेरे दिन गिने-चुने नहीं, और तेरा जमाव बिखरने वाला नहीं? ऐ यज़ीद! क्या तूने अल्लाह का ये क़ौल नहीं सुना: “जो अल्लाह की राह में क़त्ल किए गए उन्हें मुर्दा न समझो, बल्कि वो ज़िन्दा हैं—अपने रब के पास—और उन्हें रिज़्क़ दिया जाता है।”
फ़लहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन अल्लज़ी ख़तमा लि-अव्वलिना बिस्सआदति वलमग़फिरah वलि-आख़िरिना बिश्शहादति वर्ऱह्मअह, व नसअलुल्लाह अं युक्मिला लहुमुस्सवाब व यूजिबा लहुमुल मज़ीद व युह्सिना अलैना अलख़िलाफah; इन्नहू रहीमुन वदूद, व हस्बुनल्लाहु व निअमल वकील
पस तमाम हम्द अल्लाह रब्बुल आलमीन के लिए है जिसने हमारे अव्वलीन को सआदत और मग़फ़िरत पर ख़त्म किया, और हमारे आख़िरीन को शहादत और रहमत पर; और हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि वह उनके लिए सवाब मुकम्मल करे, उन्हें और ज़्यादा अता करे, और हमें अच्छे तरीके से निज़ाम/जाँ-नशीनी दे। बेशक वह रहीम और वदूद है। अल्लाह हमारे लिए काफ़ी है और वही बेहतरीन कारसाज़ है।
स्सलामु अला आदम सिफ़वतुल्लाह,
अस्सलामु अला नूह नबीयिल्लाह,
अस्सलामु अला इब्राहीम खलीलिल्लाह,
अस्सलामु अला मूसा कलीमिल्लाह,
अस्सलामु अला ईसा रूहिल्लाह,
अस्सलामु अलैका या रसूलल्लाह,
अस्सलामु अलैका या ख़ैरा ख़ल्किल्लाह,
अस्सलामु अलैका या सफ़िय्यल्लाह,
अस्सलामु अलैका या मुहम्मद इब्न अब्दिल्लाह ख़ातमन-नबीय्यीन,
अस्सलामु अलैका या अमीरल-मोमिनीन अलीय्य इब्न अबी तालिब वसिय्य रसूलिल्लाह,
अस्सलामु अलैकि या फातिमह सैय्यिदत निसाइ़ल आलमीन,
अस्सलामु अलैकुमा या सिब्तै नबीय्यिर-रह्मह,
व सैय्यिदै शबाबि अहलिल जन्नह,
अस्सलामु अलैका या अलीय्य इब्न अल-हुसैन सैय्यिदल आबिदीन व क़ुर्रत ऐनिन-नाज़िरीन,
अस्सलामु अलैका या मुहम्मद इब्न अली बाक़िरल इल्मि बादन-नबी,
अस्सलामु अलैका या जाफ़र इब्न मुहम्मद अस्सादिक़ अलबार्र अलअमीन, अस्सलामु अलैक
या मूसा इब्न जाफ़र अत्ताहिर अत्तुहर,
अस्सलामु अलैका या अलीय्य इब्न मूसा अर्रिद़ा अलमुर्तज़ा,
अस्सलामु अलैका या मुहम्मद इब्न अली अत्तक़ी,
अस्सलामु अलैका या अलीय्य इब्न मुहम्मद अन्नक़ी अन्नासिह अलअमीन,
अस्सलामु अलैका या हसन इब्न अली,
अस्सलामु अला अलवसिय्यि मिन बादिह,
अल्लाहुम्म सल्लि अला नूरिका व सिराजिक व वलिय्यि वलिय्यिक,
वसिय्यि वसिय्यिक व हुज्जतिक अला ख़ल्किक,
अस्सलामु अलैकि या बिन्त रसूलिल्लाह,
अस्सलामु अलैकि या बिन्त फातिमह व ख़दीजह,
अस्सलामु अलैकि या बिन्त अमीरिल-मोमिनीन,
अस्सलामु अलैकि या उख्तल हसन वल-हुसैन,
अस्सलामु अलैकि या बिन्त वलिय्यिल्लाह,
अस्सलामु अलैकि या उख्त वलिय्यिल्लाह,
अस्सलामु अलैकि या अम्मत वलिय्यिल्लाह व रहमतुल्लाहि व बरकातुह,
अस्सलामु अलैकि अर्रफ़ल्लाहु बैनना व बैनकुम फ़िल जन्नह व हशरना फ़ी ज़ुमरतकुम,
व अउरदना हौज़ नबीय्यिकुम,
व सक़ाना बि-कासि जद्दिकुम मिन यद अलीय्य इब्न अबी तालिब सलवातुल्लाहि अलैकुम,
अस्अलुल्लाह अं युरियना फ़ीकुमुस्सुरूर वल-फ़रज,
व अं यज्मअना व इय्याकुम फ़ी ज़ुमरति जद्दिकुम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व आलिह,
व अं ला यस्लुबना मआरिफ़तकुम इन्नहू वलिय्युन क़दीर,
अतक़र्रबु इलल्लाहि बि-हुब्बिकुम वल-बराआति मिन अअदाइकुम,
वत्तस्लीमि इलल्लाहि रादियं बिहि ग़ैरा मुनकिरिं वला मुस्तक्बिर,
व अला यक़ीनि मा अता बिहि मुहम्मद,
व बिहि रादिन नत्लुबु बि-ज़ालिका वज्हक या सैय्यिदी,
अल्लाहुम्म व रिद़ाक वद्दारल आख़िरह,
या सैय्यिदती या ज़ैनब,
इश्फ़ई ली फ़िल जन्नह फ़-इन्न लकी इंदल्लाहि शा’नन मिनश्शा’न,
अल्लाहुम्म इन्नी अस्अलुक अं तख़्तिम ली बिस्सआदह,
फ़ला तस्लुब मिन्नी मा अना फीह वला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलीय्यिल अज़ीम, अल्लाहुम्म इस्तजिब लना व तक़ब्बलहु बि-करमिक व इज़्ज़तिक,
व बिरह्मतिक व आफ़ियतक,
व सल्लल्लाहु अला मुहम्मद व आलिहि अज्मईन,
व सल्लम तस्लीमन या अरहमर-राहिमीन
अनुवाद/मानी पढ़ें
आदम, अल्लाह के चुने हुए पर सलाम,
नूह, अल्लाह के नबी पर सलाम,
इब्राहीम, अल्लाह के ख़लील पर सलाम,
मूसा, अल्लाह के कलीम पर सलाम,
ईसा, अल्लाह की रूह पर सलाम,
आप पर सलाम, ऐ रसूलुल्लाह,
आप पर सलाम, ऐ अल्लाह की मख़लूक़ में सबसे बेहतरीन,
आप पर सलाम, ऐ अल्लाह के सफ़ी,
आप पर सलाम, ऐ मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह—ख़ातिमुन-नबीय्यीन,
आप पर सलाम, ऐ अमीरुल-मोमिनीन अली बिन अबी तालिब—रसूलुल्लाह के वसी,
आप पर सलाम, ऐ फातिमा—तमाम आलम की औरतों की सैय्यिदा,
आप दोनों पर सलाम, ऐ नबी-ए-रहमत के दोनों नवासे,
और ऐ जन्नत के जवानों के दोनों सरदार,
आप पर सलाम, ऐ अली बिन अल-हुसैन—सैय्यिदुल आबिदीन और देखने वालों की आंखों की ठंडक,
आप पर सलाम, ऐ मुहम्मद बिन अली—नबी के बाद इल्म के बाक़िर,
आप पर सलाम, ऐ जाफ़र बिन मुहम्मद—सादिक़, नेक, अमीन; आप पर सलाम,
ऐ मूसा बिन जाफ़र—पाक और बहुत पाकीज़ा,
आप पर सलाम, ऐ अली बिन मूसा—रिद़ा, मुर्तज़ा,
आप पर सलाम, ऐ मुहम्मद बिन अली—तक़ी,
आप पर सलाम, ऐ अली बिन मुहम्मद—नक़ी, नासिह, अमीन,
आप पर सलाम, ऐ हसन बिन अली,
और उनके बाद आने वाले वसी पर सलाम,
ऐ अल्लाह! अपने नूर, अपने चिराग़ और अपने वली के वली पर दुरूद भेज,
और अपने वसी के वसी पर, और अपनी मख़लूक़ पर अपनी हुज्जत पर,
आप पर सलाम, ऐ बिन्त-ए-रसूलुल्लाह,
आप पर सलाम, ऐ फातिमा और ख़दीजा की बेटी,
आप पर सलाम, ऐ अमीरुल-मोमिनीन की बेटी,
आप पर सलाम, ऐ हसन और हुसैन की बहन,
आप पर सलाम, ऐ अल्लाह के वली की बेटी,
आप पर सलाम, ऐ अल्लाह के वली की बहन,
आप पर सलाम, ऐ अल्लाह के वली की फूफी—और अल्लाह की रहमत व बरकतें आप पर हों,
आप पर सलाम; अल्लाह हमारे और आपके दरमियान जन्नत में पहचान क़ायम करे, और हमें आपके समूह में उठाए,
और हमें आपके नबी के हौज़ पर ले जाए,
और हमें आपके दादा के प्याले से, अली बिन अबी तालिब के हाथ से पिलाए—अल्लाह की सलवातें आप सब पर हों,
मैं अल्लाह से मांगता हूँ कि वह आपके ज़रिए हमें खुशी और फ़रज (गुशाइश) दिखाए,
और हमें और आपको आपके दादा मुहम्मद (स) की जमाअत में जमा करे,
और हमसे आपकी मारिफ़त न छीने; बेशक वह वली और क़ादिर है,
मैं अल्लाह की क़ुर्बत आपके मुहब्बत के ज़रिए और आपके दुश्मनों से बराअत के ज़रिए चाहता हूँ,
और अल्लाह के हुक्म के सामने सर-ए-तस्लीम ख़म करता हूँ—उससे राज़ी होकर, न इन्कार करने वाला न घमंड करने वाला,
और उस बात पर यक़ीन रखते हुए जो मुहम्मद (स) लाए,
और इसी पर राज़ी होकर, मैं इसी से (तेरी) रज़ा चाहता हूँ, ऐ मेरे मौला,
ऐ अल्लाह! और (हमारे लिए) तेरी रज़ा और आख़िरत का घर,
ऐ मेरी सैय्यिदा, ऐ ज़ैनब,
जन्नत में मेरे लिए शफ़ाअत फरमाइए; बेशक अल्लाह के यहां आपका बड़ा मक़ाम है,
ऐ अल्लाह! मैं तुझसे मांगता हूँ कि तू मेरा ख़ातिमा सआदत पर कर,
फिर मुझसे वह (नेमत) न छीन जो मैं उसमें हूँ; और न कोई ताक़त है न क़ुव्वत, मगर अल्लाह ही से जो बुलंद व अज़ीम है; ऐ अल्लाह! हमारी दुआ क़ुबूल कर और अपने करम व इज़्ज़त से इसे स्वीकार फरमा,
और अपनी रहमत व आफ़ियत से,
और अल्लाह दुरूद भेजे मुहम्मद और उनकी आल पर, सब पर,
और सलाम भेजे, ऐ सबसे बढ़कर रहम करने वाला